Mahashivratri vart khata in hindi , शिवरात्रि व्रत कहानी

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महाशिवरात्रि के दिन भक्त जप, तप और व्रत करते हैं तथा महाशिवरात्रि की कहानी सुनते हैं। महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को होता है कुछ लोग चतुर्दशी के दिन भी इस व्रत को करते हैं ऐसा कहा जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान शंकर का रूद्र के रूप में अवतरण हुआ था प्रलय के समय इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं इसलिए इसे महाशिवरात्रि या कालरात्रि भी कहा जाता है।

माना जाता है कि इसी दिन शिव ने तीनों लोकों की अपार सुंदरी तथा शीलावती गोरी को अर्धांगिनी रूप में पाया था, इसलिए सनातन धर्म में महाशिवरात्रि को एक महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि का व्रत करने वाले साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है और भगवान शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं और संपत्ति प्रदान करते हैं कालो के काल और देवों के देव महादेव के इस व्रत को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और नर-नारी, किन्नर, बालक, वृद्ध सभी कर सकते हैं।

इस व्रत को विधि विधान तथा स्वस्थ मन भाव से जो भी करता है भगवान शिव प्रसन्न होकर उसे अपार सुख संपदा प्रदान करते हैं यहां व्रत के दिन सुने जाने वाली महाशिवरात्रि की कहानी (महाशिवरात्रि की कथा)दी गई है -maha shivaratri story in hindi

महाशिवरात्रि की कहानी। mahashivratri ki kahani (maha shivaratri story in hindi).

Mahashivratri vart khata in hindi

महाशिवरात्रि की कहानी – एक बार माता पार्वती ने भगवान शिवशंकर से पूछा कि ऐसा कौन सा श्रेष्ठ और सरल व्रत पूजन है जिससे मृत्यु लोक के प्राणी सहज ही आपकी कृपा प्राप्त कर लेते हैं?उत्तर में शिवजी ने माता पार्वती को शिवरात्रि के व्रत की विधि बता कर महाशिवरात्रि की कथा सुनाई – एक बार चित्रभानु नाम का एक शिकारी था जो पशुओं का शिकार करके अपने परिवार को पालता था। उससे कारी ने एक साहूकार से ऋण लिया था लेकिन वह उसे समय पर चुका नहीं सका,

जिससे साहूकार ने क्रोधित होकर शिकारी को शिवमठ में बंदी बना दिया। संयोगवश वह महाशिवरात्रि का दिन था और वहां कीर्तन चल रहा था। शिकारी ध्यान मग्न होकर कीर्तन तथा शिव संबंधित धार्मिक बातें सुन रहा था। चतुर्दशी को उसने महाशिवरात्रि व्रत कथा भी सुनी। शाम के समय साहूकार ने शिकारी से ऋण संबंधी बात की तब शिकारी ने अगले दिन सारा ऋण चुकाने का वचन दिया और बंधन मुक्त होकर वहां से चला गया।

चित्रभानु वहां से सीधा जंगल में शिकार खोजने गया। भटकते भटकते उसे रात हो गई लेकिन शिकार नहीं मिला। वहां एक बेल का पेड़ था जिसके नीचे शिवलिंग था। रात को शिकार के लिए वह उसी बेल के पेड़ पर चढ़ गया,और नींद ना आ जाए इसलिए वह बेलपत्र को तोड़कर नीचे गिराने लगा। वह बार-बार बेलपत्र तोड़ता और नीचे गिराता, जिससे बेलपत्र नीचे स्थित शिवलिंग पर जाकर गिरने लगे।

इस प्रकार दिन भर भूखे प्यासे रहने से शिकारी का व्रत भी पूर्ण हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। रात्रि का एक पहर बीत जाने के पश्चात वहां एक गर्भवती हिरणी आई। उसका शिकार करने के लिए शिकारी ने जैसे ही अपने धनुष पर तीर चढ़ाया तो वह हिरणी बोली – मैं गर्भवती हूं और शीघ्र ही बच्चे को जन्म देने वाली हूं। तुम एक साथ दो दो जीवो की हत्या करोगे तो अच्छा नहीं होगा , मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।

हिरणी की बात सुनकर शिकारी के मन में दया आ गई और उसने हिरणी को जाने दिया। कुछ देर बाद एक और हिरण उधर से निकली, जिसे देखकर शिकारी प्रसन्न हो गया और अपने धनुष पर बाण चढ़ाया। उसे देखकर हिरनी ने विनम्रता पूर्वक निवेदन किया, मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं और कामातुर विरहिणी हूं। मैं अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं और अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास लौट आऊंगी। उसकी बात सुनकर शिकारी ने उसे भी जाने दिया

रात्रि का अंतिम पहर बीत ही रहा था कि तभी एक और मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से गुजरी। उसे देखकर शिकारी ने तुरंत ही अपना धनुष उठाया और बाण चलाने ही वाला था कि वह मृगी बोली, यदि तुम मुझे मार दोगे तो मेरे बच्चे जंगल में भटक जाएंगे मैं अपने बच्चों को इनके पिता के पास छोड़ कर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष आऊंगी। मृगी की बात सुनकर शिकारी बोला, मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं मेरे बच्चे भूख प्यास से तड़प रहे होंगे।

उत्तर में मृगी ने कहा कि जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। मैं थोड़ी देर के लिए तुमसे जीवनदान मांग रही हूं , बच्चों को इनके पिता के पास छोड़कर मैं तुम्हारे पास आने की प्रतिज्ञा करती हूं। मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को दया आ गई और उसने उसे भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल के पेड़ पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़कर गिराता जा रहा था।

जब सुबह होने को आई तब एक हष्ट पुष्ट मृग उस तरफ आया, तब शिकारी ने सोचा कि इसका तो अवश्य शिकार कर लूंगा। जब उसने धनुष पर तीर चढ़ाया तो वह मृग बोला – यदि तुम ने पूर्व में आने वाली तीन मृगीयो और उनके बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मार दो। मैं उन तीनों का पति हूं और यदि तुमने उनको छोड़ दिया है तो मुझे भी कुछ क्षणों का जीवनदान दो मैं उनसे मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आऊंगा।

मृग की बात सुनकर पूरे रात का घटनाक्रम उसकी आंखों के सामने घूम गया। उसने सारी बात मृग को बताई। तब उसने कहा कि मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई है मेरी मृत्यु से उनकी प्रतिज्ञा टूट जाएगी और वह अपने धर्म का पालन नहीं कर सकेगी। जिस प्रकार तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है वैसे ही मुझे भी कुछ क्षणों का जीवनदान दो, मैं उन सब के साथ तुम्हारे समक्ष उपस्थित होऊंगा।

उपवास, रात्रि जागरण और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया और उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया। धनुष बाण उसके हाथ से सहज ही छूटकर गिर गई। भगवान शिव की कृपा से उसका हिंसक हृदय करुणामय भाव से भर गया। वह आज अपने अतीत के कर्मों को याद कर पश्चाताप की आग में जलने लगा।

थोड़ी देर बाद वह मृग सपरिवार उस शिकारी के समक्ष उपस्थित हुआ। किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता सात्विकता और प्रेम भावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसकी आंखों से आंसू झर-झर कर गिरने लगे। उस मृग परिवार को ना मारकर शिकारी ने अपने हृदय को कोमल और दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देवी देवता भी इस घटना को देख रहे थे।

इस घटना की परिणति होते ही समस्त देवी देवताओं ने पुष्प वर्षा की । भगवान शिव ने अपने दिव्य स्वरूप के दर्शन कराए तथा सुख समृद्धि का वरदान देकर उसे गुह नाम प्रदान किया। यही वह गुह था जिसकी भगवान श्री राम की मित्रता हुई।

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