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महावीर स्वामी का जीवन परिचय । Mahaveer Swami biography, Life story and essay in Hindi

Mahaveer biography in Hindi
  • महावीर स्वामी का अवतरण
  • जैन ग्रंथों में चमत्कार के रूप में वर्णन
  • सांसारिक क्रिया – कलापों से मोहभंग
  • महावीर स्वामी की शिक्षाएँ
  • उपसंहार

महावीर स्वामी का अवतरण

देश की धार्मिकता कर्मकांड की प्रबलता से विकृत थी । पशुओं और नर – पुत्रों के रक्त से यज्ञ में आहुतियाँ दी जाती थीं । देव – देवी प्रतिमा के सम्मुख नर – मेध किया जाता था । माँस – मंदिरा का भोग लगाया जाता था । नारी भोग का साधन बन गई थी । धर्म के नाम पर ढोंग चल रहा था । समाज के बन्धन ढीले पड़ चुके थे । ऐसी शोचनीय स्थिति में एक महापुरुष उत्पन्न हुआ । इसका नाम था वर्धमान , जो बाद में महावीर स्वामी के नाम से प्रख्यात हुआ ।

महावीर स्वामी जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर थे । आपका जन्म लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व चैत्र सुदी त्रयोदशी के दिन बिहार प्रान्त के वैशालीनगर के पास कुंडग्राम में लिच्छवीवंशीय क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ के घर हुआ था । आपकी माता का नाम त्रिशलादेवी था । पुत्र जन्म से पूर्व माता त्रिशला ने चौदह शुभ स्वप्न देखे थे । इन स्वप्नों में उसे क्रमशः श्वेत हाथी , वृषभ , सिंह , लक्ष्मी , पुष्पमाला , चन्द्र , सूर्य , पताका , कलश , कमल सरोवर , क्षीर – सागर , देव – विमान , रत्नराशि और अग्नि के दर्शन हुए । इससे विश्वास हो गया कि उसकी होने वाली सन्तान महान गुणों से युक्त पुत्र होगा । उनका विश्वास सत्य सिद्ध हुआ ।

जैन ग्रंथों में चमत्कार के रूप में वर्णन

जैन धर्म ग्रन्थों में महावीर के जन्म का चमत्कार के रूप में वर्णन किया गया है । वहाँ लिखा है- ” प्रकृति प्रसन्न हो उठी । धरती ने फूलों का शृंगार किया । वसन्त समीर बहने लगा । सर्वत्र आनन्द और उल्लास छा गया , क्योंकि आज धराधाम पर एक महापुरुष का अवतार हुआ था । ” पिता ने पुत्र जन्म पर बहुत उल्लास प्रकट किया । धूमधाम से उत्सव मनाया गया और प्रजा को अनेक प्रकार की सुविधाएँ दी गई । लिच्छवी वंश उस समय बहुत विख्यात था तथा आपके जन्मकाल से राजा सिद्धार्थ का प्रभाव और अधिक बढ़ने लगा । इस कारण आपका नाम ‘ वर्द्धमान ‘ रखा गया ।

वर्द्धमान बाल्यकाल से ही अत्यन्त होनहार , ज्ञानी तथा वीर थे । कहा जाता है कि आपने बचपन में ही एक भयानक सर्प तथा एक मदोन्मत्त हाथी को अपने पराक्रम से वश में कर लिया था । तभी से आपका नाम महावीर ( महान् वीर ) प्रसिद्ध हुआ ।

आप अत्यन्त दयालु थे तथा जीव – हिंसा और प्राणियों के दुःखों को देखकर आपका मन संसार से उदासीन रहता था । आप 30 वर्ष की आयु तक घर में रहे , तत्पश्चात् राज्य , परिवार तथा सम्बन्धियों का मोह छोड़कर साधु बन गए और वन के एकांत – शांत स्थानों में आत्म – शुद्धि के लिए कठोर तपस्या करने लगे ।

सांसारिक क्रिया – कलापों से मोहभंग

12 वर्ष तक तपस्या करने के पश्चात् वे वीतराग होकर पूर्ण ज्ञानी हो गए । आपने जनता को धर्म का स्वरूप समझाना प्रारंभ कर दिया । इनका सबसे पहला उपदेश राजगृह के निकट विपुलाचल पर्वत पर हुआ । राजगृह का शासक राजा श्रोणिक बिम्बसार महावीर स्वामी का परम भक्त था । धीरे – धीरे आपका प्रभाव बढ़ने लगा तथा आपके उपदेशों का प्रभाव सारे भारत में हो गया ।

जैन दर्शन की मान्यता है कि जगत का प्रत्येक सत् , प्रतिक्षण परिवर्तित होकर भी कभी नष्ट नहीं होता । वह उत्पाद , व्यय और धौत्य , इस प्रकार त्रिलक्षण है । कोई भी पदार्थ चेतन हो या अचेतन , इस नियम का अपवाद नहीं है ।

महावीर स्वामी की शिक्षाएँ

आपकी मुख्य शिक्षाएँ इस प्रकार हैं

  • ( 1 ) किसी प्राणी को मारना , सताना या उसका दिल दुखाना हिंसा कहलाती है । सभी प्राणियों में एक ही आत्मा है । अतः हिंसा करना महापाप है , अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है ।
  • ( 2 ) जीव अपने अच्छे – बुरे कार्यों तथा विचारों के अनुसार कर्म करता है और उनके अनुसार तरह – तरह की योनियों में जन्म लेकर दुःख – सुख भोगता है । जब वह सब बाहरी पदार्थों से रागद्वेष छोड़कर आत्मचिन्तन तथा ध्यान में लगता है , तब दुर्भावों तथा दुःखों से छूट जाता है ।
  • ( 3 ) सच्ची श्रद्धा , सच्चा ज्ञान और सच्चा आचरण ( रत्नत्रय ) ही आत्मशुद्धि के कारण हैं । इन तीनों की पूर्ति होने पर ही संसार से छुटकारा ( मोक्ष ) मिलता है ।
  • ( 4 ) हिंसा , झूठ , चोरी , कुशील और परिग्रह – ये पाँच पाप हैं । इनसे आत्मा मलिन होती है । इनका त्याग किए बिना मानव सदाचारी नहीं बन सकता ।
  • ( 5 ) मद्य , नशीली वस्तुओं तथा माँस का त्याग प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक बताया गया है ।
  • ( 6 ) आवश्यकता से अधिक धन का संग्रह भी पाप है , क्योंकि इससे दूसरों के अधिकार कुचले जाते हैं ।
  • ( 7 ) प्रत्येक वस्तु में अनेक गुण विद्यमान हैं । अतः विविध दृष्टिकोणों से विचार किए बिना वस्तु का पूर्ण तथा सत्य रूप ज्ञात नहीं हो सकता । दूसरों की बात पर भी गंभीरता तथा शांति से विचार करना चाहिए । अपनी – अपनी ही चलाना अनुचित है ।
  • ( 8 ) क्रोध प्रीति का , मान विनय का , माया मित्रता का और लोभ सारे गुणों का नाश करता है । अतः क्षमा से क्रोध को जीतो , नम्रता से अभिमान को जीतो और संतोष से लोभ को जीतो ।
  • इस प्रकार लगातार तीस वर्ष तक प्राणिमात्र को दया , सद्भाव , उदारता तथा आत्मोन्नति का पाठ पढ़ाकर 72 वर्ष की आयु में महावीर स्वामी ने कार्तिक मास की अमावस्या को प्रातः काल पावापुर ( बिहार ) में इस नश्वर शरीर को छोड़कर निर्वाण प्राप्त किया । आप जैन धर्म के अन्तिम तीर्थंकर माने जाते हैं । जैन धर्म में आचरण तथा खान – पान की पवित्रता , तपस्या तथा दान पर विशेष जोर दिया जाता है । भारत के सभी प्रान्तों में जैन धर्म के बड़े – बड़े मंदिर , धर्मशालाएँ तथा औषधालय हैं । श्रवणबेलगोला की गोमटेश्वर की 27 मीटर ऊँची मूर्ति तथा आबू , खजुराहो और देवगण आदि के जैन मंदिर अपनी कला के लिए प्रसिद्ध हैं । समय के तापसयोगी , महामृत्यु के ध्याता तथा धर्म क्रांति के अग्रदूत भगवान महावीर स्वामी का जन्म दिवस चैत सुदी ‘ महावीर जयन्ती ‘ के नाम से सर्वत्र मनाया जाता है ।

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