संकेत बिन्दु-
- प्रस्तावना
- जल – चेतना हमारा दायित्व
- जल – संकट के दुष्परिणाम
- जल – संरक्षण के उपाय
- उपसंहार ।

1. प्रस्तावना –
सृष्टि के पंचभौतिक पदार्थों में जल का सर्वाधिक महत्त्व है और यही जीवन का मूल आधार है । इस धरती पर जल के कारण ही पेड़ – पौधों , वनस्पतियों , बाग – बगीचों आदि के साथ प्राणियों का जीवन सुरक्षित है । जीवन – सुरक्षण का मूल – तत्त्व होने से कहा गया है – ‘ जल है तो जीवन है ‘ या ‘ जल ही अमृत है । ‘ धरती पर जलाभाव की समस्या उत्तरोत्तर बढ़ रही है । अतएव धरती पर जल संरक्षण का महत्त्व मानकर संयुक्त राष्ट्रसंघ ने सन् 1992 में विश्व जल दिवस मनाने की घोषणा की , जो प्रतिवर्ष 22 मार्च को मनाया जाता है ।
2. जल – चेतना हमारा दायित्व-
हमारी प्राचीन संस्कृति में जल – वर्षण उचित समय पर चाहने के लिए वर्षा के देवता इन्द्र और जल के देवता वरुण का पूजन किया जाता था । इसी प्रकार हिमालय के साथ गंगा , यमुना , सरस्वती आदि नदियों का स्तवन किया जाता था । फलस्वरूप धरती पर जल – संकट नहीं था । प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्यों से विदित होता है कि हमारे राजा एवं समाजसेवी श्रेष्ठिवर्ग पेयजल हेतु कुओं , तालाबों , पोखरों आदि के निर्माण पर पर्याप्त धन व्यय करते थे , वे जल – संचय का महत्त्व जानते थे । किन्तु वर्तमान काल में मानव की स्वार्थी प्रवृत्ति , भौतिकवादी चिन्तन एवं अनास्थावादी दृष्टिकोण के कारण उपलब्ध जल का ऐसा विदोहन किया जा रहा है , जिससे अनेक क्षेत्रों में अब पेयजल का संकट उत्पन्न हो गया है । इसीलिए हमारा दायित्व है कि हम जल को जीवन रक्षक तत्त्व के रूप में संरक्षण प्रदान करें और न केवल वर्तमान को अपितु भविष्य को भी निरापद बनावें ।
3. जल – संकट के दुष्परिणाम –
हमारे देश में औद्योगीकरण , शहरीकरण , खनिज सम्पदा का बड़ी मात्रा में विदोहन , भूजल का अतिशय दोहन तथा कारखानों के विषैले रासायनिक अपशिष्टों का उत्सर्जन होने से जल – संकट उत्तरोत्तर बढ़ रहा है । इससे न तो खेती – बाड़ी की सिंचाई हेतु पानी मिल रहा है और न पेयजल की उचित पूर्ति हो रही है । जल – संकट के कारण प्राचीन तालाब , सरोवर एवं कुएँ सूख रहे हैं , नदियों का जल – स्तर घट रहा है और जमीन के अन्दर का जलस्तर भी लगातार कम होता जा रहा है । इस तरह जल संकट के कारण अनेक वन्य जीवों का अस्तित्व मिट गया है , खेतों की उपज घट रही है और वनभूमि सूखने लगी है । धरती का तापमान निरन्तर बढ़ रहा है । इस तरह जल – संकट के अनेक दुष्परिणाम देखने में आ रहे हैं ।
4. जल संरक्षण के उपाय –
जिन कारणों से जल – संकट बढ़ रहा है , उनका निवारण करने से यह समस्या कुछ हल हो सकती है । इसके लिए भूगर्भीय जल का विदोहन रोका जावे और खानों – खदानों पर नियन्त्रण रखा जावे । वर्षा के जल का संचय कर भूगर्भ में डाला जावे , बरसाती नालों पर बाँध या एनीकट बनाये जावें , तालाबों पोखरों व कुओं को अधिक गहरा – चौड़ा किया जावे और बड़ी नदियों को आपस में जोड़ने का प्रयास किया जावे । जन – चेतना में जल संरक्षण के प्रति जागृति लायी जावे । इस तरह के उपायों से जल – संकट का समाधान हो सकता है ।
5. उपसंहार –
जल को जीवन का आधार मानकर समाज में नयी जागृति लाने का प्रयास किया जावे । ‘ अमृतं जलम् ‘ जैसे जन – जागरण के कार्य किये जावें । इससे जल – चेतना की जागृति लाने से जल – संचय एवं जल संरक्षण की भावना का प्रसार होगा तथा इससे धरती का जीवन सुरक्षित रहेगा ।