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बारिश का दिन पर निबंध – Rainy Day Essay in Hindi

वर्षा का वह दिन वर्षा का एक दिन / वर्षा में भीगने का अनुभव

बारिश का दिन पर निबंध

1 संकेत बिंदु –

  • ( 1 ) ग्रीष्मावकाश की घोषणा
  • ( 2 ) वर्षा ऋतु का प्रारंभ
  • ( 3 ) भीगने का आनंद
  • ( 4 ) वर्षा से बचाव के उपाय
  • ( 5 ) भीगने का अदभुत अनुभव ।

ग्रीष्मावकाश की घोषणा

21 अप्रैल का आनन्दपूर्ण दिन दो मास के ग्रीष्मावकाश की घोषणा का दिन । सहपाठियों , मित्रों तथा अध्यापकों से 60 दिन तक न मिल पाने की कमक , बिछुड़ने का दुःख और छुट्टियों की हार्दिक खुशी मन में लिए कक्षा से बाहर निकलकर मैं साइकिल स्टैण्ड की ओर चला । साइकिल ली और कल्पना लोक में खोया घर की ओर चल दिया । सूर्यदेव इस अवकाश घोषणा से सम्भवतः प्रसन्न नहीं हैं । अनः अपनी तेज किरणों मे अपना क्रोध प्रकट कर रहे हैं । वातावरण तप रहा है । साइकिल पर सवार गर्मी से परेशान मैं चींटी की चाल चल रहा हूँ । अकस्मात् प्रकृति ने पलटा खाया । दिवाकर के क्रोध को बादलों ने ढक लिया । आकाश मेघाच्छन्न हुआ । धीमी – धीमी शीतल पवन चलने लगी । मेरा मन प्रसन्न हुआ । मन की प्रसन्नता पैरों में प्रकट हुई । पैर पैडलों को तेजी से घुमाने लगे ।

वर्षा ऋतु का प्रारंभ

अभी दस – बीस पैडल ही मारे होंगे कि वरुण देवता ने अपना रूप प्रकट कर दिया । वर्षा की तीव्र बूँदें धरती पर मार करने लगीं । मैं सम्भल भी न पाया था कि उनका वेग बढ़ गया । में तेज बौछारों से घवरा उठा । अपने से ज्यादा चिंता थी अपनी प्यारी पुस्तकों की उनका तन मुझसे अधिक कोमल था । मुड़कर पीछे देखा , पुस्तकें अभी सुरक्षित थीं , बस्ते की ढाल ने वर्षा के वार को रोक रखा था ।

भीगने का आनंद

वर्षा जल सिर से चूचू कर चेहरे तथा नयनों से क्रीडा कर रहा है । वस्त्रों में प्रवेश कर शरीर का प्रक्षालन कर रहा है । जुराबों में घुमकर गुद्गुदी मचा रहा है । बार – बार चेहरा पोंछते हुए रूमाल भी जवाब दे गया है । वस्त्रों से पानी ऐसे झर रहा है , मानो नाइलॉन का वस्त्र सुखाने के लिए टाँग दिया हो ।

मार्ग में आश्रय नहीं , सिर छिपाने की जगह नहीं , अतः रुकने का भी लाभ नहीं । मन ने साहम की रज्जु नहीं छोड़ी ।

भीगने का अदभुत अनुभव ।

कष्ट या दुःख की अनुभूति मन से होती है । जिस भावना से कार्य किया जाता है , वैसा ही आनन्द प्राप्त होता है । वर्षा में पिकनिक का आनन्द समझकर साइकिल चला रहा हूँ । सड़क पर पानी तेजी से बह रहा है । पानी की परत ने सड़क के चेहरे को ऐसे ढक लिया हैं , मानो किसी युवती ने महीन चुनरी अपने मुख पर लपेट ली हो । पानी में साइकिल चलाते हुए जोर लगाना पड़ रहा है । इधर कार , मोटर साइकिल , तिपैहिया – जो गुजरता , वह तंजी से पानी की बौछार मार जाता , होली – सी खेल जाता । बस्ते और साइकिल महित मेरे शरीर को पुनः स्नान करा जाता । एक क्षण क्रोध आता , और दूसरे क्षण साईकल चलाने में ध्यानम्थ हो जाता ।

साहस सफलता की सीढ़ी है , सौभाग्य का साथी हैं । आगे बस स्टैण्ड का शेड आ गया । यहाँ पर अनेक नर – नारी और स्कूली बच्चे पहले से ही स्थान को आरक्षित किए हुए थे । लेकिन शेड के नीचे तक पहुँचना , भँवर में से नाव निकालना था । पटरी के नीचे ५-६ इंच की तेज धार बह रही थी । मैंने साइकिल को पानी में खड़ा किया । बस्ते को साइकिल से उतारा और शेड के नीचे पहुँच गया ।

शेड के नीचे सुरक्षित खड़ा मैं अपने को धन्य समझ रहा था , किन्तु साहब , तीव्र गति वाले वाहन होली खेलने को भूले न थे । वे जिस गति से गुजरते , उस गति से जल के छींटे हमारे ऊपर आकर डाल जाते । उस समय शेड के शरणार्थियों के मधुर वचन सुनने योग्य थे ।

किन्तु , मेरी साइकिल तो पानी के मध्य ध्यानस्थ थी । जल की धारा उसके चरणों का चुम्बल ले , आगे बढ़ रही थी । कभी – कभी तो जल की कोई तरंग मस्ती के क्षणों में साइकिल का आलिंगन करने को उतावली हो उठती थी ।

भगवान् वरुण का क्रोध कुछ शान्त होने लगा । बादलों की झोली जलकणों से खाली हो रही थी । फलतः वर्षा की बौछार बहुत धीमी हो गई थी । जनता शेड से इस प्रकार निकल पड़ी , मानो किसी सिनेमा का ‘ शो ‘ छूटा हो ।

मैंने भी शेड का आश्रय छोड़ा । पटरी से सड़क पर उतरा । जूता पानी में डूब गया था । जुराबें पैरों पर चिपट गई थीं । मैंने साइकिल स्टैंड से उतारी और चल दिया घर की ओर ।

वर्षा शांत थी , सड़क पर चहल – पहल थी । पैंट को ऊपर मोड़े , पाजामे को ऊपर उठाए , धोती को हाथ में पकड़े नर – नारी चल रहे थे ।

सोचा था , दोपहर बाद होली डालना , फेंकना , खेलना बन्द हो जाता है , पर यह मेरी भूल सिद्ध हुई । क्षिप्र – गति वाहन जल के छींटे डालकर होली का आनन्द अब भी ले रहे थे , सड़क पर पानी जो खड़ा था ।

घर पहुँचा । माँ प्रतीक्षा कर रही थी । फटाफट कपड़े उतारे । बस्ते को खोलकर देखा । वाटर प्रूफ थैले की अभेद्य वस्त्र प्राचीर में भी वर्षा की दो – चार शूरवीर बूँदों ने आक्रमण कर ही दिया था । वर्षा में भीगने का वह अनुभव भी विचित्र और स्मरणीय था ।