संकेत बिन्दु-
- प्रस्तावना
- जल – संकट की स्थिति
- जल – संकट के कारण
- संकट के समाधान हेतु सुझाव
- उपसंहार ।
1. प्रस्तावना –

पंचभौतिक पदार्थों में पृथ्वी के बाद जल तत्त्व का महत्त्व सर्वाधिक माना गया है । मंगल आदि अन्य ग्रहों में जल के अभाव से ही जीवन एवं वनस्पतियों का विकास नहीं हो पाया है- ऐसा नवीनतम खोजों से स्पष्ट हो गया है । धरती पर ऐसे कई भू – भाग हैं जहाँ पर जलाभाव से रेगिस्तान का प्रसार हो रहा है तथा प्राणियों को कष्टमय जीवन यापन करना पड़ता है । राजस्थान प्रदेश का अधिकतर भाग जल संकट से सदा ग्रस्त रहता है । समय पर उचित अनुपात में वर्षा न होने पर यह संकट और भी बढ़ जाता है ।
2. जल – संकट की स्थिति –
राजस्थान में प्राचीन काल में सरस्वती नदी प्रवाहित होती थी , जो अब धरती के गर्भ में विलुप्त हो गई । यहाँ पर अन्य कोई ऐसी नदी नहीं बहती है , जिससे जल – संकट का निवारण हो सके । चम्बल एवं माही आदि नदियाँ राजस्थान के दक्षिणी पूर्वी कुछ भाग को ही हरा – भरा रखती हैं । इसकी पश्चिमोत्तर भूमि तो एकदम निर्जल है । इसी कारण यहाँ पर रेगिस्तान का उत्तरोत्तर विस्तार हो रहा है । भूगर्भ में जो जल है , वह भी काफी नीचे है , खारा एवं दूषित है । पंजाब से श्रीगंगानगर जिले में से होकर इन्दिरा गाँधी नहर के द्वारा जो जल राजस्थान के पश्चिमोत्तर भाग में पहुँचाया जा रहा है , उसकी स्थिति भी सन्तोषप्रद नहीं है । पूर्वोत्तर राजस्थान में हरियाणा से जो पानी मिलता है , वह भी जलापूर्ति नहीं कर पाता है । इस कारण राजस्थान में जल संकट की स्थिति सदा ही बनी रहती है ।
3. जल – संकट के कारण –
राजस्थान में पहले ही शुष्क मरुस्थलीय भू – भाग होने से जलाभाव है , फिर उत्तरोत्तर आबादी बढ़ रही है और औद्योगिक गति भी बढ़ रही है । यहाँ के शहरों में एवं बड़ी औद्योगिक इकाइयों में भूगर्भीय जल का दोहन बड़ी मात्रा में हो रहा है । खनिज सम्पदा यथा संगमरमर , ग्रेनाइट , इमारती पत्थर , चूना पत्थर आदि के विदोहन से भी धरती का जल स्तर गिरता जा रहा है । दूसरी ओर वर्षा काल में सारा पानी बाढ़ के रूप में बह जाता है । शहरों में कंकरीट – डामर आदि के निर्माण कार्यों से धरती के अन्दर वर्षा का पानी नहीं जा पाता है । इस कारण पाताल तोड़ कुएँ भी सूख गये हैं । यहाँ भूगर्भीय जल के विदोहन की यही स्थिति अनियन्त्रित है । पुराने कुएँ , बावड़ी आदि की अनदेखी करने से भी जल स्रोत सूख गये हैं । पिछले कुछ वर्षों से राजस्थान में वर्षा भी अत्यल्प मात्रा में हो रही है । इस कारण बाँधों , झीलों , तालाबों – पोखरों और छोटी कुइयों में भी पानी समाप्त हो गया है । इन सब कारणों से यहाँ पर जल – संकट गहराता जा रहा है ।
4. संकट के समाधान हेतु सुझाव –
राजस्थान में बढ़ते हुए जल संकट के समाधान के लिए ये उपाय किये जा सकते हैं— ( 1 ) भूगर्भ के जल का असीमित विदोहन रोका जावे । ( 2 ) खनिज सम्पदा के विदोहन को नियन्त्रित किया जावे । ( 3 ) शहरों में वर्षा के जल को धरती के गर्भ में डालने की व्यवस्था की जावे । ( 4 ) बाँधों एवं एनीकटों का निर्माण , कुओं एवं बावड़ियों को अधिक गहरा और कच्चे तालाबों – पोखरों को अधिक गहरा – चौड़ा किया जावे । ( 5 ) पंजाब – हरियाणा- गुजरात में बहने वाली नदियों का जल राजस्थान में लाने के प्रयास किये जावें । ऐसे उपाय करने से निश्चय ही राजस्थान में जल संकट का निवारण हो सकता है ।
5. उपसंहार-
” रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून ” अर्थात् पानी के बिना जन – जीवन अनेक आशंकाओं से घिरा रहता है सरकार को तथा समाज सेवी संस्थाओं को विविध स्रोतों से सहायता लेकर राजस्थान में जल – संकट के निवारणार्थ प्रयास करने चाहिए । ऐसा करने से ही यहाँ की धरा मंगलमय बन सकती है ।
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