वर्षा ऋतु पर निबंध – Rainy Season Essay in Hindi

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वर्षा ऋतु संकेत बिंदु –

वर्षा ऋतु पर निबंध

( 1 ) वर्षा ऋतु का परिचय

( 2 ) वर्षा ऋतु के अनेक रूप

( 3 ) सावन के मन – भावन रूप

( 4 ) वर्षा ऋतु में हिमपात का मनमोहक दृश्य

( 5 ) वर्षा से हानियाँ |

वर्षा ऋतु का परिचय

भास्कर की क्रोधाग्नि से त्राण पाकर धरा शांत और शीतल हुई । उसको झुलसे हुए गात पर रोमावली – सी खड़ी हो गई । वसुधा हरी भरी हो उठी । पीली पड़ी पत्तियों और मुरझाए पेड़ों पर हरियाली छा गई । उपवन में पुष्प खिल उठे । कुंजों में लताएं एक – दूसरे से आलिगन बद्ध होने लगीं । सरिता – सरोवर जल मे भर गए । उनमें कमल मुकुलित बदन खड़े हुए । नदियाँ इतरातीं , इठलातीं अठखेलियाँ करतीं , तट – बंधन तोड़तीं बिछुड़े हुए पति सागर से मिलने निकल पड़ीं ।

सम्पूर्ण वायुमंडल शीतल और सुखद हुआ । भवन , मार्ग , वीथियाँ , लता – पादप धुले से नजर आने लगे । वातावरण मधुर और सुगंधित हुआ । जन – जोवन में उल्लास छा गया । पिकनिक और सैर – सपाटे का मौसम आ गया । पेड़ों पर झूले पड़ गए । किशोर – किशोरियाँ पेंगे भरने लगीं । उनके कोकिल कंठी से मल्हार फूट निकाला । पावस में बरसती वारिधारा को देखकर प्रकृति के चतुर चितेरे सुमित्रानंदन पंत का हृदय उठा- ‘ पकड़ वारि की धार झूलता है रे मेरा मन ।

‘ इस ऋतु में आकाश में बादलों के झुंड नई – नई क्रीडा करते हुए अनेक रूप धारण करते हैं । मेघमालाच्छादित गगन – मंडल में इन्द्र के वज्रपात से चिनगी दिखाने के समान विद्युल्लता की बार – बार चमक और चपलता देखकर वर्षा में बन्दर भी भीगी बिल्ली बन जाते हैं । मेघों में बिजली की चमक में प्रकृति सुन्दरी के कंकण मनोहारिणी छवि देते हैं ।

घनघोर गर्जन से ये मेघ कभी प्रलय मचाते हैं तो कभी इन्द्रधनुषी सतरंगी छटा से मन मोह लेते हैं ।

वन – उपवन तथा बाग – बगीचों में यौवन चमका । पेड़ – पौधे स्वच्छन्दतापूर्वक भीगते हुए मस्ती में झूम उठे । हरे पत्ते की हरी डालियाँ रूपी कर नील गगन को स्पर्श करने के लिए मचल उठे । पवन वेग से गुंजित तथा कंपित वृक्षावली सिर हिलाकर चित्त को अपनी ओर बुलाने लगीं । वर्षा का रस रसाल के रूप में टप – टप गिरता हुआ टपका बन जाता है तो मंद – मंद गिरती हुई जामुनें मानों भादों के नामकरण संस्कार को सूचित कर रही हों । ‘ बाबा जी के बाग में दुशाला ओढ़े खड़ी हुई ‘ मोतियों से जड़ी कूकड़ी की तो बात ही निराली है ।

सरिताओं की सुन्दर क्रीडा को देखकर प्रसाद जी का हृदय विस्मित हो लिखता है – ‘ सघन वृक्षाच्छादित हरित पर्वत श्रेणी , सुन्दर निर्मल जल पूरित नदियों का हरियाली में छिपते हुए बहना , कतिपय स्थानों में प्रकट रूप में वेग सहित प्रवाह हृदय की चंचलधारा को अपने साथ बहाए लिए जाता है । ‘ ( प्रकृति – सौंदर्य , लेख से )

सावन के मन – भावन रूप

सावन की मनभावती फुहारों और धीमी – धीमी शीतल पवन के चलते मतवाले मयूर अपने पंखों के चंदोवे दिखा दिखाकर नाच रहे हैं । पोखरों में मेंढ़क टर्र – टर्र करते हुए अपना गला ही फाड़े डाल रहे हैं । बगुलों की पंक्ति पंख फैला – फैलाकर चाँदनी- सी तान रहे हैं । मछलियाँ जल में डुबकी लगाकर जल – क्रीडा का आनन्द ले रही हैं । रात्रि में जुगनू अपने प्रकाश से मेघाच्छादित आकाश में दीपावली के दीपक समान टिमटिमा रहे हैं । केंचुए , बिच्छू , मक्खी – मच्छर सैर का आनन्द लेने भूतल पर विवरण कर रहे हैं । खगगण का कलरव , झींगुर समूह की झंकार वातावरण को संगीतमय बना रहे हैं ।

कविवर पंत को तो लगता है कि ये सब कीट – पतंग , पशु – पक्षी प्रणय में विह्वल हो आनन्द के गीत गा रहे हैं

वर्षा के प्रिय स्वर उर में बुनते सम्मोहन ।

प्रणयातुर शत कीट – विहग करते सुख गायन ॥

वर्षा ऋतु में हिमपात का मनमोहक दृश्य

इस ऋतु में पर्वतों पर हिमपात का दृश्य मनमोहक होता है । हल्की सी हवा में बर्फ रूई के फायों के रूप में हवा में तैरती हुई जब भूमि पर उतरती है तो उस नयनाभिराम दृश्य को देखकर हृदय नाच उठता है । पर्वतीय नगरों का चप्पा – चप्पा हिममय हो जाता है । पेड़ पौधे सब बर्फ से लद जाते हैं । मकानों की छतें बर्फ से ढक जाती हैं । चारों ओर सफेदी का साम्राज्य छा जाता है । बर्फ से ढकी बाड़ की जाली और तार चाँदी के समान चमकते हैं । देवदार वृक्षों को देखकर लगता है स्वर्ग के रुपहले विचित्र देवदार निकल गए हैं या खंभों के सहारे विकराल मक्के की बालें लटकाई गई हैं ।

चाँदनी रात में तो हिमपात का सौन्दर्य अत्यधिक हृदयग्राही बन जाता है , क्योंकि आकाश से गिरती हुई बर्फ और बर्फ से ढके हुए पदार्थ शुभ्र ज्योत्स्ना की आभा से चमकते हुए बहुत ही सुन्दर लगते हैं । चाँदनी के कारण सारा दृश्य दूध के समुद्र के समान दिखाई देता है । नयनाभिराम हिमराशि की श्वेतिमा मन को मोह लेती है ।

वर्षा ऋतु के अनेक रूप

वर्षा का वीभत्स रूप है अतिवृष्टि । अतिवृष्टि से जल – प्रलय का दृश्य उपस्थित होता है । दूर – दूर तक जल ही जल । मकान , सड़क , वाहन , पेड़ – पौधे , सब जल मग्न । जीवन भर की संचित सम्पत्ति , पदार्थ जल देवता को अर्पित तथा जल प्रवाह के प्रबल वेग में नर – नारी , बालक वृद्ध तथा पशु बह रहे हैं । अनचाहे काल का ग्रास बन रहे हैं । गाँव गाँव अपनी प्रिय स्थली को छोड़कर शरणार्थी बन सुरक्षित स्थान पर शरण लेने को विवश हैं । प्रकृति – प्रकोप के सम्मुख निरीह मानव का चित्रण करते हुए प्रसाद जी लिखते हैं

हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर , बैठ शिला की शीतल छाँह एक पुरुष भीगे नयनों से , देख रहा था प्रलय प्रवाह ।

चिंता कातर बदन हो रहा , पौरुष जिसमें ओत – प्रोत । निकल रही थी मर्मवेदना , करुणा विकल कहानी – सी । ‘ (कामायनी : चिन्तासर्ग )

यह है वर्षा , जो आँख – मिचौनी खेला करती है । इसके आगमन और गमन के पूर्वाभास में मौसम विशेषज्ञ भी धोखा खा जाते हैं । बेचारी आकाशवाणी तथा दूरदर्शन अविश्वसनीय सिद्ध हो जाते हैं । अभी – अभी उमड़ – घुमड़ कर बादल आए और ‘ जो गरजते हैं , वे बरसते नहीं ‘ के अनुसार बिन बरसे चले गए । कभी – कभी आकाश साफ होता है और अकस्मात् ही इन्द्र देवता बरस पड़ते हैं । थोड़ी देर बाद वर्षा रुकने की सम्भावना होती है , पर शनीचर की झड़ी , न कोठी न कड़ी ‘ बन जाती है । वर्षा होगी तो खेती फले – फूलेगी । अकाल नहीं पड़ेगा । अनाज महँगा नहीं होगा । पर्वतों पर पड़ी बर्फ सरिता – सरोवर और नद – नदियों का जल से जीवधारियों की प्यास शान्त रखेगी । जलवायु पवित्र होगा , पृथ्वी का कूड़ा – कचरा धुल जाएगा , चातक की प्यास बुझ जाएगी ।

वर्षा से हानियाँ

वर्षा से अनेक हानियाँ भी हैं । सड़कों पर और झोंपड़ियों में जीवन व्यतीत करने वाले लोग भीगे वस्त्रों में अपना समय गुजारते हैं । उनका उठना – बैठना , सोना – जागना , खाना पीना दुश्वार हो जाता है । वर्षा से मच्छरों का प्रकोप होता है , जो अपने दंश से मानव को बिना माँगे मलेरिया दान कर जाते हैं । वायरल फीवर , टायफॉइड बुखार , गैस्ट्रो एंटराइटिस , डायरिया , डीसेन्ट्री , कोलेरा आदि रोग इस ऋतु के अभिशाप हैं ।

जगत् का जीवन , प्राणियों का प्राण , धरा का शृंगार , नद – नदियों , वन – उपवन का अलंकरण , हृदय में उल्लास और उत्साह का प्रेरक , प्रेम और कामना की सृजक वर्षा ऋतु को पंत जी पुनः पुनः आने का निमंत्रण देते हुए कहते हैं इन्द्र धनुष के झूले में झूलें मिल सब जन । फिर – फिर आए जीवन में सावन मन भावन ।

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