भैया दूज का पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है । इस पर्व का प्रमुख लक्ष्य भाई – बहन के पावन सम्बन्ध तथा प्रेम – भाव की स्थापना करना है । भैया दूज के दिन बहिने भाई को तिलक लगाकर उनके स्वस्थ तथा दीर्घायु होने की मंगलकामना करती हैं ।
भैया दूज के दिन भाई को बहन के घर नहाना चाहिये । भाई को भोजन कराकर तिलक लगाकर गोला देना चाहिये । इस दिन भाई को भोजन में चावल खिलाने चाहिये । इस दिन भाई का बहन के घर भोजन करने का विशेष महत्त्व है । चाहे बहन चचेरी , ममेरी या धर्म की ही क्यों न हो । भाई भोजन आदि के पश्चात् बहन से तिलक करवाते हैं और बहनों को वस्त्राभूषण आदि उपहार स्वरूप देते हैं ।
भैया दूज की कहानी। bhaiya dooj ki kahani.

भैया दूज की कहानी – एक बहिन के सात भाई थे । वह उन्हें बहुत प्यारी थी । उसका पति अपने माँ बाप का इकलौता बेटा था जिसके होने पर की गई मनौतियों को पूरा न करने से देवता अप्रसन्न थे । क्रुद्ध होकर देवताओं ने पुत्र तथा पुत्रवधु को मार डालने का निर्णय किया । उस बहन को किसी तरह इसका पता चल गया । उसने भावी जीवन में आने वाली दुःखों की कल्पना करके उपचार के तरीके सोचकर अपने भाईयों से ससुराल जाने की जिद की । यद्यपि वे बिना बुलाए नहीं भेजना चाहते थे पर बहिन के न मानने पर पर डोली सजा कर भेज दी । उसने अपने पास दूध , माँस तथा ओढ़नी रख दी ।
थोड़ी दूर जाने पर देवताओं के प्रकोप से डोली का रास्ता सांप ने रोक लिया । बहिन तुरंत दूध सांप के सामने रखकर आगे बढ़ गई । थोड़ी दूर और आगे जाने पर उस पर शेर झपटा तो उसने मांस फेंक दिया । शेर मांस में रुचि लेने लगा और कहार डोली लेकर आगे बढ़ गए । रास्ते में यमुना जी थीं ज्योहिं कहार डोली को यमुना से पार करने लगे , यमुना ऊँची लहरें उठाकर डोली को आत्मसात करने लगीं । बहिन ने ओढ़नी समर्पित कर यमुना की लहरों को शांत कर दिया ।
नववधू को बिना बुलाए घर पधारी पाकर ससुराल वाले आश्चर्य में पड़ गए । बहिन ने आदेश दिया कि उसके गृह प्रवेश के लिए घर के पिछवाड़े फूलों का दरवाजा बनवाया जाए । दरवाजा बना । ज्योंही वह पार करने लगी , द्वार उस पर गिर पड़ा । फूलों का द्वार होने के कारण चोट न आ पाई ।
घर में प्रवेश करके उसने सबसे पहले स्वयं खाना खाने का हट किया।खाना खाने लगी तो खाने में सुच्चा काँटा मिला जिसको उसने डिबिया में सहेज लिया । शाम को घूमने का समय आया तो सबसे पहले उसने ही जूता पहना । जूते में काला बिच्छू था । उसने वह भी उसी डिबिया में सहेज कर रख लिया । रात हुई तो उसने फिर जिद्द की कि पहले मैं ही सोऊंगी । बहू का हर काम के लिए पहला करना यद्यपि किसी को अच्छा नहीं लग रहा था पर परिस्थिति वश सब हो रहा था । सोने के कमरे में उसे काला नाग मिला । उसने उसे भी मार कर सहेज लिया फिर पति को शय्या पर सुलाया । इतना सब करने के पश्चात उसने अपनी सास को डिबिया खोल कर सुच्चा काँटा , बिच्छू तथा साँप दिखा कर कहा , ” मैंने तुम्हें पुत्रवती किया है अर्थात् स्वयं कष्ट सह कर तुम्हारे पुत्र के जीवन की रक्षा करके अपने सुहाग को नया जीवन दिया है । ये सब कष्ट देवताओं के रुष्ट हो जाने के कारण उठाने पड़े हैं । भविष्य में कभी मनौती मान कर पूरा करना न भूलना । ” इतना कहकर सात भाईयों की परम प्यारी बहिन भाईयों के साथ पीहर लौट गई और सास ने देवी देवताओं का पूजन करके भाई – बहिनों के प्रेम की प्रशंसा तथा उनके सुखी होने का आशीष दिया।