शंख प्रक्षालन क्या है।
शंख प्रक्षालन एक क्लीजिंग योगाभ्यास है। जो हमारे शरीर को हानिकारक रोगाणुओं टॉक्सिक तथा विषैले पदार्थों से बचाता है। शंख प्रक्षालन क्रिया में शंख का अर्थ होता है आंते। और प्रक्षालन का अर्थ होता है धोना या सफाई करना। अर्थात वह क्रिया जिसमें आंतों की सफाई की जाती है अथवा धोया जाता है शंख प्रक्षालन क्रिया कहलाती हैं। शंख प्रक्षालन को वारिसार क्रिया भी कहा जाता है। इसके अभ्यास से शरीर विषैले पदार्थों कीटाणुओं आदि से मुक्त हो जाता है। और इनके कारण होने वाली बीमारियां भी दूर हो जाती है।
शंख प्रक्षालन करने की विधि
रात्रि के समय करीब 10,12 लीटर स्वच्छ पानी उबालकर अच्छी तरह से ढक कर रख दे। सुबह उस जल को हल्का गुनगुना कर उसमें नमक इच्छा अनुसार मिलाएं अगर पानी साफ नहीं है तो बीमारी खत्म होने के बजाय बढ़ सकती है। क्योंकि यह जल अकेला ही मुंह से गुदाद्वार तक सफाई करता हुआ गुजरता है। अशुद्ध जल में कीटाणु होने से रास्ते में कमजोर स्थान पर रुक कर नया रोग भी उत्पन्न कर सकते हैं और पुराने रोग को भी बढ़ावा दे सकते हैं। इसलिए उबला हुआ शुद्ध पानी ही काम में लें।
शंख प्रक्षालन को करने के लिए सर्वप्रथम कागासन में बैठ जाए। दो गिलास पानी पिएं। इस क्रिया में जल मुख से आहार नाल तक होते हुए आमाशय में पहुंचता है। इसके बाद छोटी आंत में होते हुए बड़ी आंत तथा गुदाद्वार से बाहर निकलता है। आमाशय से आगे जगह-जगह कपाट है वह अपनी सहज क्रिया द्वारा ही खुलते हैं लेकिन इस क्रिया में पानी पीकर कुछ आसन करने पड़ते हैं जिससे यह कपाट खुलते जाएंगे। व जल मलांश को साथ लेता हुआ बाहर निकल जाएगा। इस तरह पूरे शरीर के अंदर की सफाई हो जाती हैं। कपाट खोलने के लिए ताड़ासन, ताड़ासन तिर्यक,कटिचक्रासन, तिर्यक भुजंगासन, उदारकृष्णासन आदि आसन करने पड़ते हैं। यहां पर यह सभी आसन नीचे चित्र में दिखाए गए हैं। इन सब आसना की पांच आवर्तियां करनी चाहिए। इसके पश्चात दो गिलास जल पीना चाहिए फिर 5 आवर्तियां करनी चाहिए। इस प्रकार 8 से 10 गिलास पानी पीकर आसन करते जाए जब तक शोच की शुरू हो जाएगी। शौच जाइए। शुरू में तो ठोस मल बाहर आएगा धीरे-धीरे पानी पीते जाए आसन करते जाए अंत में साफ पानी पीने पर वैसा ही साफ पानी गुदाद्वार से बाहर निकलेगा। किसी को धीरे व किसी को जल्दी शौच हो सकता है। शौच जाते समय जोर ना लगाए।
शंख प्रक्षालन के आसन।
शंख प्रक्षालन क्रिया में कपाट खोलने के लिए ताड़ासन, ताड़ासन तिर्यक,कटिचक्रासन, तिर्यक भुजंगासन, उदारकृष्णासन आदि आसन करने पड़ते हैं।




विशेष – प्रारंभ में चार गिलास पानी पीकर 5 दिन तक आसनों की 5 से 10 आवर्तीया करते रहे। इसको लघु शंख प्रक्षालन कहते हैं। इसको 5 या 6 दिन तक रोज करने से शंख प्रक्षालन करते समय कोई परेशानी नहीं होगी। जिस दिन शंख प्रक्षालन करें उस दिन चाय भजन आदि वह किसी प्रकार का आहार और अल्पाहार ना करें। पहले नमक का पानी तैयार करें बाल्टी में पानी तैयार करते समय नमक संतुलित होना चाहिये। ना तो कम हो ना ही अधिक हो।
शंख प्रक्षालन के फायदे। शंख प्रक्षालन करने के लाभ
1. सभी बीमारियां पेट से शुरू होती हैं। शंख प्रक्षालन क्रिया मुख से शुरू होकर आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत सब को साफ करती हुई गुदाद्वार से पूरी गंदगी को बाहर करती हैं। जिससे पेट संबंधित सभी बीमारियों जैसे कि कब्ज, मंदाग्नी, बदहजमी में आदि का इससे नाश होता है।
2. शंख प्रक्षालन क्रिया गुर्दे में किसी भी प्रकार की पथरी नहीं बनने देती तथा मूत्र से संबंधित सभी विकारों के निवारण में लाभकारी है।
3. उल्लेखनीय है कि यह क्रिया आमवात के कीटाणुओं को बाहर कर इस बीमारी को जड़ से उखाड़ फेंकती हैं।
4. शंख प्रक्षालन क्रिया हृदय रोग व मधुमेह में भी लाभकारी है।
5. साधना करने वाले को यह क्रिया अवश्य करनी चाहिए।
सावधानी। शंख प्रक्षालन क्रिया में सावधानी।
1. उच्च रक्तचाप व मधुमेह के रोगियों को नमक के पानी से यह क्रिया नहीं करनी चाहिए यदि इच्छा हो तो नीम के पत्ते उबाले जा सकते हैं।
2. पेट में अल्सर वालों को भी यह किया नहीं करनी चाहिए और यदि करे तो योग के विशेषज्ञ के निर्देशन में ही करनी चाहिए।
3. शंख प्रक्षालन क्रिया करने के पश्चात ठंडे पानी से स्नान नहीं करना चाहिए।
4. पूर्ण उपवास काल में भी इस क्रिया को नहीं करना चाहिए। उपवास से कुछ दिन पहले तक शंख प्रक्षालन कर सकते हैं।
5. शंख प्रक्षालन करने के पश्चात कुंजल क्रिया अवश्य करनी चाहिए क्योंकि आमाशय में बचा हुआ नमक व मेले का अंश कुंजल क्रिया द्वारा बाहर आ सकेगा।
भोजन। शंख प्रक्षालन क्रिया करने के बाद भोजन
शंख प्रक्षालन क्रिया करने के बाद भोजन में छिलके वाली मूंग की दाल और चावल की कम नमक की खिचड़ी बनाकर काफी मात्रा में घी डालकर 5 से 7 दिन तक खाएं।
अवधि। शंख प्रक्षालन कितने समय तक करें।
शंख प्रक्षालन क्रिया करने के लिए प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर लगभग 5 आवर्तियां होने तक करें। उनको करने में थोड़ा समय लग सकता है। यह क्रिया वर्ष भर में 4 या 6 बार से ज्यादा नहीं करनी चाहिए। अन्यथा छोटी आंत में पक्वाशय कमजोर होने से पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। और पांडु रोग होने का वह भी रहता है।