नौली क्रिया। नौली क्रिया करने की विधि,लाभ और सावधानियां।nauli kriya in hindi

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नौली क्रिया में पेट के मध्य भाग की मांसपेशियों को मथानी की भांति संचालित किया जाता है। यह क्रिया कुछ कठिन अवश्य है किंतु निरंतर अभ्यास से आप इसे अच्छी तरह से कर सकते हैं नौली क्रिया करते समय आपकी आंखें पेट की ओर होनी चाहिए। नौली क्रिया पेट से संबंधित बीमारियों और आंतों की समस्याओं में फायदा दिलाती हैं। नौली क्रिया को करने से अनेक लाभ मिलते हैं। इससे पाचन तंत्र मजबूत होता है अपच की समस्या दूर होती हैं और भूख को बढ़ाती हैं।

नौली क्रिया षटकर्मों के शुद्धिकरण की चौथी क्रिया है। जठराग्नि को बढ़ाने वाली इस क्रिया में पेट की मांसपेशियों की मालिश हो जाती हैं तथा उदर कि क्रियाशीलता में वृद्धि होती हैं।

नौली क्रिया के अत्यधिक अभ्यास से कुंडलिनी जागरण होता है इस कारण नौली क्रिया को शक्तिचालिनी भी कहते हैं। नौली क्रिया का पूर्ण अभ्यास करने पर शरीर में एक शक्तिशाली योग बल का प्रसार होता है जिसके द्वारा बस्ती क्रिया और शंखप्रक्षालन सिद्ध हो जाती है। और शरीर विकार रहित शुद्ध और कांतिमान होकर चमकने लगता है।

शुरुआत में नौली क्रिया करना थोड़ा कठिन लग सकता है इसलिए आप नौली क्रिया की जगह अग्निसार क्रिया का भी अभ्यास कर सकते हैं लेकिन यदि साधक को आध्यात्मिक अनुभव चाहिए तो उसे नौली क्रिया को अवश्य सीखना चाहिए। तो आइए जानते हैं नौली क्रिया करने की विधि।

नौली क्रिया करने की विधि।nauli kriya steps.

नौली क्रिया। नौली क्रिया करने की विधि,लाभ और सावधानियां।nauli kriya in hindi
नौली क्रिया करने की विधि।nauli kriya steps.

1. सर्वप्रथम दोनों पाव फैलाते हुए और घुटनों को थोड़ा मोड़ते हुए खड़े हो जाए।
2. अब अपने दोनों हाथों को सामने की तरफ लाए और घुटनों व दोनों जंघाओ पर रख ले।
3. ध्यान रहे कि दोनों पाव के बीच थोड़ा अंतर हो और हाथ घुटनों पर ही हो।
4. आप पहले उड्डियानबंध का अभ्यास करें। श्वास को बाहर छोड़ते हुए पेट को बार-बार फुलाए और चिपकाए।
5. अब पेट के दानों और दाएं बाएं नौली क्रिया का अभ्यास करें। इसके लिए दाई और की हथेली पर जोर डालते हुए नौली को दाएं तरफ लाए तथा बाई हथेली पर जोर डालते हुए नौली को पेट के बाई और लाऐ।
6. ध्यान रहे कि नौली क्रिया की समस्त क्रियाए स्वास्थ छोड़ते हुए ही की जाती हैं।

नौली क्रिया करने की अन्य विधियां।
• उड्डियानबंध
• वामननौली
• दक्षिण नौली
• मध्यमा नौली

• उड्डियानबंध – उधर तथा पेट की आंतों को अंदर की तरफ खींचने की प्रक्रिया को उदड्डियानबंध नौली कहा जाता है। इस क्रिया में उधर को जितना हो सके उतना अंदर की तरफ खींचते हैं
• वामननौली – उद्ड्डियानबंध क्रिया के पश्चात नौली को बीच में से ढीला छोड़ते हैं और फिर इसे बाई ओर ले जाते हैं।
• दक्षिण नौली – वामननौली के पश्चात दक्षिण नौली की क्रिया की जाती है इसमें उदर को दाई ओर ले जाते हैं ध्यान रहे कि उदर अंदर की तरफ खींचा हुआ रहे
• मध्यमा नौली – इस क्रिया में नौली को बाएं से दाएं ओर ले जाते हैं और फिर दाई से बाई ओर लाते हैं

नौली क्रिया। नौली क्रिया करने की विधि,लाभ और सावधानियां।nauli kriya in hindi
नौली क्रिया करने की विधि।nauli kriya steps.

नौली क्रिया के लाभ (फायदे)।nauli kriya benefits.

1. नौली क्रिया करने से कब्ज की समस्या दूर होती है तथा मोटापा घटता है।
2. महिलाओं में मासिक धर्म संबंधी विकार दूर होते हैं
3. नौली क्रिया करने से व्यक्ति को भूख अधिक लगती है अर्थात भूख में वृद्धि होती है।
4. इससे मंदाग्नि दूर होती है। वायु गोला जैसी बीमारी पास तक नहीं फटकती है।
5. नौली क्रिया गैस एसिडिटी को खत्म करने के साथ-साथ पेट की मांसपेशियों को मजबूत बनाती है। और आंतों के लिए भी फायदेमंद है।
6. इससे मूत्र विकार दूर होते हैं। और बार बार पेशाब जाने की समस्या से छुटकारा मिलता है।
7. यह क्रिया तिल्ली ,यकृत और पेट से संबंधित बीमारियों में राहत दिलाती है। इससे समस्त प्रकार के पेट की समस्या और वायु विकार दूर हो जाते हैं।
8. नौली क्रिया करने से कुंडलिनी शक्ति का जागरण होता है। जिससे शरीर कांतिमय बनता है और शरीर में तेज उत्पन्न होता है।
9. नौली क्रिया करने से उदरगत मांसपेशियों की क्रियाशीलता बढ़ती है जिससे वहां पर रक्त का संचार सही रहता है।

नौली क्रिया करने का समय और अवधि। नौली क्रिया को कब और कितनी देर करें।

नौली क्रिया को करने के लिए प्रातः काल का समय सबसे उपयुक्त माना गया है। प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच आदि से निवृत होने के पश्चात नौली क्रिया करनी चाहिए। इस क्रिया को 10 से 15 बार दोहराना चाहिए। अथवा आपके पेट की मांसपेशियों में जितनी क्षमता है उसके अनुरूप इस क्रिया को कर सकते हैं।

नौली क्रिया करते समय सावधानियां

सावधानियां
1. आंतों के विकार या सूजन की अवस्था में योग के अभ्यासियो को नौली क्रिया नहीं करनी चाहिए। अन्यथा लाभ की जगह हानि होने की आशंका बनी रहती है।
2. नौली क्रिया करते समय हमेशा पेट को खाली रखें खाना खाने के बाद नौली क्रिया कभी भी ना करें।
3. गर्भावस्था अथवा मासिक’धर्म में महिलाओं को नौली क्रिया नहीं करनी चाहिए।
4. यदि व्यक्ति को पेट से संबंधित कोई विकार है अथवा ऑपरेशन की स्थिति में नौली क्रिया नहीं करनी चाहिए।
5. यदि गुर्दे अथवा पित्ताशय में पथरी हो तो नौली क्रिया का अभ्यास ना करे।
6.शुरुआत में जब आप नौली क्रिया सीख रहे हो तब इसे किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ही करें।

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