पाबूजी राठौड़, हिंदू और मुस्लिम दोनों के द्वारा है पूजनीय

2 Min Read

पाबूजी राठौड़ राजस्थान के पंच पिरों में से एक है, इन्हें हिंदू और मुस्लिम दोनों पूजते हैं। इन्हें लक्ष्मण का अवतार भी माना जाता है।पाबूजी का जन्म कोलू मंड फलोदी जोधपुर में 1239 ईस्वी में हुआ था। इनके पिता का नाम दान देव जी राठौड़ तथा माता कमला दे थी। इनकी पत्नी का नाम सुप्यार दे था। पाबूजी की पूजा मैहर मुस्लिम करते हैं तथा इनकी मंदिर का पुजारी राठौड़ वंश का होता है।

पाबूजी को अर्द्ध कुंवारा क्यों कहते हैं

पाबूजी राठौड़, हिंदू और मुस्लिम दोनों के द्वारा है पूजनीय

पाबूजी का विवाह अमरकोट (पाकिस्तान) के सोडा वंश के शासक सूरजमल की पुत्री सुप्यार दे से हुआ था। पाबूजी के बहनोई जिंद राव खींची जो नागौर के शासक थे उन्होंने पाबूजी की घोड़ी केसरकालमी को मांगा किंतु देवल चारणी (पाबूजी को केसरकालमी घोड़ी दी थी) ने यह घोड़ी जिंद राव खिची को देने से मना कर दिया। तो जिंद राव खिची ने देवल चारणी के गायों को चुरा ली और नागौर चला गया। उस समय पाबूजी के साढ़े तीन फेरे ही हुए थे और उन्होंने फेरे को बीच में ही छोड़कर जिंद राव खिची से गायों को छुड़ाने के लिए चले गए।

पाबूजी की मृत्यु

पाबूजी और उनके बहनोई जिंद राव खिची के मध्य धेचू (जोधपुर) नामक स्थान पर युद्ध हुआ जिसमें पाबूजी गोरक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हुए।

ऊंटों के देवता

मारवाड़ मैं सर्वप्रथम ऊंट लाने का श्रेय पाबूजी को ही जाता है इन्होंने ही मारवाड़ को सर्वप्रथम ऊंट दिए थे इस वजह से इन्हें ऊंटों का देवता भी कहते हैं।

प्लेग रक्षक देवता

पाबूजी राठौड़ को प्लेग जैसी महामारी से लोगों को बचाने के कारण इन्हें प्लेग रक्षक देवता के रूप में भी जाना जाता है।

पाबूजी की फड़ व पावड़े

पाबूजी की फड़ रावण हत्था वाद्य यंत्र द्वारा गाई जाती है तथा इनके पावडे मार नामक यंत्र से बांचे जाते हैं पाबूजी का ग्रंथ पाबू प्रकाश ग्रंथ आशिया मोड़ जी ने लिखा था।

Share This Article