पौराणिक कहानियां । mythology story in hindi

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यहां कुछ विद्वान लेखकों द्वारा लिखित पौराणिक कहानियां । (mythology story in hindi) संकलित की गई है। हमें आशा है कि पाठक इससे विशेष लाभ उठाएंगे। मनुष्य नित्य शिक्षार्थी हैं और उसे सदा सर्वदा सावधान रहकर जहां-तहां से शिक्षा ग्रहण करते रहना चाहिए। यह शिक्षा adarsh पुरुषों के जीवन से विशेष रूप से मिलती है जिनके जीवन में दूसरों को ऊंचा उठाने योग्य आदर्श बातें हो।पौराणिक कहानियां । mythology story in hindi मैं आप ऐसी ही कुछ कहानियों के बारे में जानेंगे।

1.राजकुमार कुणाल का संयम और क्षमा। mythology story in hindi.

राजकुमार कुणाल का संयम और क्षमा(mythology story in hindi.) : सम्राट अशोक का नाम इतिहास में प्रसिद्ध है । उनके एक पुत्र का नाम कुणाल था । राजकुमार कुणाल बड़े नम्र , विनयी , आज्ञाकारी और पितृभक्त थे । प्रजा राजकुमार कुणाल को बहुत चाहती थी । राजकुमार भी प्रजाके लोगों को सुखी करने का ही उद्योग किया करते थे । राजकुमार कुणाल की पत्नी कंचना भी पतिव्रता और सुशीला थीं ।

सम्राट अशोक की छोटी रानी का नाम तिष्यरक्षिता था । सम्राट् अपनी छोटी रानी को बहुत चाहते थे ; किन्तु उसका चरित्र अच्छा नहीं था । वह राजकुमार कुणाल की सुन्दर आँखोंपर मोहित हो गयी थी । राजकुमार अपनी सौतेली माता का आदर अपनी माता के समान ही करते थे ; किन्तु उससे तिष्यरक्षिता को संतोष नहीं था । एक दिन अवसर पाकर एकान्तमें वह राजकुमार से मिली और अपने मनकी बात कहने लगी । राजकुमार कुणाल ने हाथ जोड़कर कहा – ‘ माताजी ! मैं आपको अपनी सगी माता के समान मानता हूँ । अपने पुत्र से आपको कोई अनुचित बात नहीं कहनी चाहिये ।

तिष्यरक्षिता ने बहुत चेष्टा की ; किन्तु कुणाल ने उसके पैरों को छोड़कर उसके मुखकी ओर देखा ही नहीं । अन्तमें तिष्यरक्षिता क्रोधमें भरकर बोली – ‘ मैं तुम्हारे घमण्डको चूर कर दूंगी । तुम्हारे इन सुन्दर नेत्रोंको मैं निकलवा लूँगी । नहीं तो तुम अब भी मेरी बात मान लो । ‘

कुणाल ने कहा – ‘ माताजी ! मुझसे पाप नहीं होगा । वैसे आप जो दण्ड देंगी , उसे मैं माता का उपहार समझकर स्वीकार करूँगा । ‘ इतना कहकर कुणाल वहाँ से चले गये । तिष्यरक्षिता क्रोध से पागल हो गयी । उसी दिन से वह राजकुमार कुणाल से अपने अपमान का बदला लेने का अवसर देखने लगी । संयोगवश तक्षशिला के पास कुछ शत्रुओं ने उपद्रव किया । सम्राट अशोक रानी तिष्यरक्षिता की सलाह के बिना कोई काम नहीं करते थे । रानी ने सम्राट् को सलाह दी कि शत्रुओं को दबाने के लिये सेनाके साथ राजकुमार कुणालको तक्षशिला भेजना चाहिये । सम्राट् ने कुणाल को तक्षशिला भेज दिया । राजकुमार की पत्नी कंचना भी अपने पति के साथ गयी । राजकुमार के चले जाने पर तिष्यरक्षिता ने सेनापति के नाम एक पत्र लिखा । सम्राट अशोक रानीपर पूरा विश्वास करते थे । राजकीय मुहरें तिष्यरक्षिता के पास रहती थीं तिष्यरक्षिता ने अपने पत्रपर सम्राट् के नाम की मुहर लगा दी और पत्र एक कर्मचारी के द्वारा तक्षशिला के सेनापति के पास भेज दिया ।

तक्षशिला में शत्रुओं को राजकुमार ने भगा दिया था । वहाँ सभी लोग राजकुमार के व्यवहार से उनको देवता के समान मानने लगे थे । जब तिष्यरक्षिता का पत्र सेनापति को मिला , सेनापति के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा । वह पत्र उसने राजकुमार को दिखाया । राजकुमार कुणालने कहा – ‘ सेनापति ! यह सम्राट् का पत्र है । इसपर सम्राट् की मुहर लगी है । आप सम्राट् की आज्ञाका पालन करें । ‘ सेनापति ने कहा – ‘ राजकुमार ! ऐसी कठोर आज्ञा का पालन मुझसे नहीं होगा । सम्राट् ने पता नहीं कैसे आपकी आँखें निकालने की आज्ञा दे दी । ‘

पौराणिक कहानियां । mythology story in hindi
1.राजकुमार कुणाल का संयम और क्षमा। mythology story in hindi.

कुणाल बोले – ‘ आज्ञा चाहे जैसे दी गयी हो , वह सम्राट् की आज्ञा है । मुझे और आपको भी उसका पालन करना चाहिये । लेकिन सेनापति ने राजकुमार की आँखें फोड़ना स्वीकार नहीं किया । अन्त में अपने पिताकी आज्ञाका सम्मान करने के लिये राजकुमार कुणाल ने अपने हाथों अपने नेत्रों में लोहे के सूजे भोंक लिये । अन्धे होकर राजकुमार कुणाल तक्षशिला से चल पड़े । उनके साथ केवल उनकी पतिव्रता पत्नी कंचना थी । वही अपने पतिका हाथ पकड़कर आगे – आगे चलती और उनकी सेवा करती थी । चक्रवर्ती सम्राट अशोक का पुत्र अपनी पत्नी के साथ साधारण भिखारी की भाँति गाँव – गाँव भटक रहा था । राजकुमार वीणा बजाकर गीत गाते और इससे जो कुछ मिल जाता , उसीसे उन दोनों का काम चलता था । भटकते – भटकते कई वर्षों बाद वे पाटलिपुत्र ( पटना ) पहुँचे । रात को जब कुमार गा रहे थे , सम्राट् ने उनका स्वर पहचान लिया । वे राजमहल से दौड़े कुणाल के पास गये । इतने दिनों के बाद सम्राट् को रानी तिष्यरक्षिता की दुष्टता का पता लगा ।

सम्राट् ने आज्ञा दी – ‘ तिष्यरक्षिता को अभी मेरे सामने जीते जी पृथ्वी में गाड़ दो । ‘ राजकुमार कुणाल ने सम्राट् की आज्ञा सुनते ही पृथ्वी पर मस्तक रख कर कहा पिताजी वे मेरी माता है मैं आपसे भिक्षा मांगता हूं कि आप उन्हें क्षमा कर दें। राजकुमार की अद्भुत क्षमाशीलता ने सम्राट और सभी लोगों को चकित कर दिया। इस कहानी(mythology story in hindi.) से हमें यह शिक्षा मिलती है की व्यक्ति को जीवन मे क्षमाशीलता का गुण होना चाहिये।

2. Hindi kahani: सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कहानी। mythology story in hindi.

सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कहानी(mythology story in hindi.) : सत्यवादी महाराज सूर्यवंश में त्रिशंकु बड़े प्रसिद्ध राजा हुए हैं । उनके पुत्र हुए महाराज हरिश्चन्द्र । महाराज इतने प्रसिद्ध सत्यवादी और धर्मात्मा थे कि उनकी कीर्ति से देवताओं के राजा इन्द्रको भी डाह होने लगी । इन्द्र ने महर्षि विश्वामित्र को हरिश्चन्द्र की परीक्षा लेने के लिये उकसाया । इन्द्र के कहने से महर्षि विश्वामित्रजी ने राजा हरिश्चन्द्र को योगबल से ऐसा स्वप्न दिखलाया कि राजा स्वप्न में ऋषिको सब राज्य दान कर रहे हैं । दूसरे दिन महर्षि विश्वामित्र अयोध्या आये और अपना राज्य माँगने लगे । स्वप्न में किये दान को भी राजाने स्वीकार कर लिया और विश्वामित्रजी को सारा राज्य दे दिया । महाराज हरिश्चन्द्र पृथ्वीभर के सम्राट् थे । अपना पूरा राज्य उन्होंने दान कर दिया था । अब दान की हुई भूमि में रहना उचित न समझकर स्त्री तथा पुत्रके साथ वे काशी आ गये ; क्योंकि पुराणों में यह वर्णन है कि काशी भगवान् शंकर के त्रिशूल पर बसी है । अत : वह पृथ्वी में होने पर भी पृथ्वीसे अलग मानी जाती है । अयोध्या से जब राजा हरिश्चन्द्र चलने लगे तब विश्वामित्रजी ने कहा – ‘ जप , तप , दान आदि बिना दक्षिणा दिये सफल नहीं होते । तुमने इतना बड़ा राज्य दिया है तो उसकी दक्षिणा में एक हजार सोने की मोहरें और दो । ‘

राजा हरिश्चन्द्र के पास अब धन कहाँ था । राज्य – दान के साथ राज्य का सब धन तो अपने – आप दान हो चुका था । ऋषि से दक्षिणा देने के लिये एक महीने का समय लेकर वे काशी आये । काशी में उन्होंने अपनी पत्नी रानी शैव्याको एक ब्राह्मण के हाथ बेच दिया । राजकुमार रोहिताश्व छोटा बालक था । प्रार्थना करने पर ब्राह्मण ने उसे अपनी माता के साथ रहने की आज्ञा दे दी । स्वयं अपने को राजा हरिश्चन्द्र ने एक चाण्डाल के हाथ बेच दिया और इस प्रकार ऋषि विश्वामित्र को एक हजार मोहरें दक्षिणामें दीं । महारानी शैव्या अब ब्राह्मण के घर में दासी का काम करने लगीं । चाण्डाल के सेवक होकर राजा हरिश्चन्द्र श्मशानघाट की चौकीदारी करने लगे । वहाँ जो मुर्दे जलाने को लाये जाते , उनसे कर लेकर तब उन्हें जलाने देने का काम चाण्डाल ने उन्हें सौंपा था । एक दिन राजकुमार रोहिताश्व ब्राह्मण की पूजाके लिये फूल चुन रहा था कि उसे साँप ने काट लिया । साँप का विष झटपट फैल गया और रोहिताश्व मरकर भूमिपर गिर पड़ा ।

उसकी माता महारानी शैव्या को न कोई धीरज बंधानेवाला था और न उनके पुत्रकी देह श्मशान पहुँचाने वाला था । वे रोती – बिलखती पुत्रकी देहको हाथों पर उठाये अकेली रात में श्मशान पहुंचीं । वे पुत्र की देहको जलाने जा रही थी कि हरिश्चन्द्र वहाँ आ गये और मरघटका कर माँगने लगे । बेचारी रानीके पास तो पुत्र की देह ढकने को कफन तक नहीं था । उन्होंने राजा को स्वरसे पहचान लिया और गिड़गिड़ाकर कहने लगीं – ‘ महाराज ! यह तो आपका ही पुत्र मरा पड़ा है । मेरे पास कर देने को कुछ नहीं है । ‘ राजा हरिश्चन्द्र को बड़ा दुःख हुआ ; किंतु वे अपने धर्मपर स्थिर बने रहे । उन्होंने कहा – ‘ रानी ! मैं यहाँ चाण्डाल का सेवक हूँ । मेरे स्वामी ने मुझे कह रखा है कि बिना कर दिये कोई यहाँ मुर्दा न जलाने पावे । मैं अपने धर्म को नहीं छोड़ सकता । तुम मुझे कुछ देकर तब पुत्रकी देह जलाओ । ‘ रानी फूट – फूटकर रोने लगी और बोलीं – ‘ मेरे पास तो यही एक साड़ी है , जिसे मैं पहिने हूँ , आप इसी में से आधा ले लें । ‘

पौराणिक कहानियां । mythology story in hindi
सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कहानी। mythology story in hindi.

जैसे ही रानी अपनी साड़ी फाड़ने चलीं , वैसे ही वहाँ भगवान् नारायण , इन्द्र , धर्मराज आदि देवता और महर्षि विश्वामित्र प्रकट हो गये । महर्षि विश्वामित्र ने बताया कि कुमार रोहित मरा नहीं है । यह सब तो ऋषिने योगमाया से दिखलाया था । राजा हरिश्चन्द्र को खरीदने वाले चाण्डाल के रूप में साक्षात् धर्मराज थे । सत्य साक्षात् नारायण का स्वरूप है । सत्य के प्रभाव से राजा हरिश्चन्द्र महारानी शैव्या के साथ भगवान्के धाम को चले गये । महर्षि विश्वामित्र ने राजकुमार रोहिताश्व को अयोध्या का राजा बना दिया । सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र के सम्बन्ध में यह दोहा प्रसिद्ध है।

चन्द्र टरै सूरज टर , टरै जगत व्यवहार । पै दृढ़व्रत हरिश्चन्द्रको , टरै न सत्य विचार ॥

3. Kahani : कर्ण की उदारता।mythology story in hindi

कर्ण की उदारता(mythology story in hindi.): एक बार भगवान् श्रीकृष्ण पाण्डवों के साथ बातचीत कर रहे थे । भगवान् उस समय कर्ण की उदारता की बार बार प्रशंसा करते थे , यह बात अर्जुन को अच्छी नहीं लगी । अर्जुन ने कहा – ‘ श्यामसुन्दर ! हमारे बड़े भाई धर्मराजजी से बढ़कर उदार तो कोई है नहीं , फिर आप उनके सामने कर्ण की इतनी प्रशंसा क्यों करते हैं ? ‘ भगवान्ने कहा – ‘ यह बात मैं तुम्हें फिर कभी समझा दूंगा । ‘ कुछ दिनों पीछे अर्जुन को साथ लेकर भगवान् श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर के राजभवन के दरवाजे पर ब्राह्मण का वेश बनाकर पहुंचे । उन्होंने धर्मराज से कहा – ‘ हमको एक मन चन्दन की सूखी लकड़ी चाहिये । आप कृपा करके मँगा दें । ‘ उस दिन जोर की वर्षा हो रही थी । कहीं से भी लकड़ी लाने पर वह अवश्य भीग जाती । महाराज युधिष्ठिर ने नगर में अपने सेवक भेजे ; किन्तु संयोग की बात ऐसी कि कहीं भी चन्दन की सूखी लकड़ी सेर – आध – सेरसे अधिक नहीं मिली ।

युधिष्ठिर ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की – ‘ आज सूखा चन्दन मिल नहीं रहा है । आप लोग कोई और वस्तु चाहें तो तुरन्त दी जा सकती है । ‘ भगवान्ने कहा – ‘ सूखा चन्दन नहीं मिलता तो न सही । हमें कुछ और नहीं चाहिये । ‘ वहाँ से अर्जुन को साथ लिये उसी ब्राह्मण के वेशमें भगवान् कर्ण के यहाँ पहुँचे । कर्ण ने बड़ी श्रद्धा से उनका स्वागत किया । भगवान्ने कहा – ‘ हमें इसी समय एक मन सूखी लकड़ी चाहिये । कर्ण ने दोनों ब्राह्मणोंको आसनपर बैठाकर उनकी पूजा की । फिर धनुष चढ़ाकर उन्होंने बाण उठाया । बाण मार मारकर कर्ण ने अपने सुन्दर महल के मूल्यवान् किंवाड़ , चौखटें , पलंग आदि तोड़ डाले और लकड़ियों का ढेर लगा दिया । सब लकड़ियाँ चन्दनकी थीं । यह देखकर भगवान्ने कर्णसे कहा – ‘ तुमने सूखी लकड़ियों के लिये इतनी मूल्यवान् वस्तुएँ क्यों नष्ट कीं ?

पौराणिक कहानियां । mythology story in hindi
Kahani : कर्ण की उदारता।mythology story in hindi

‘कर्ण हाथ जोड़कर बोले – ‘ इस समय वर्षा हो रही है । बाहर से लकड़ी मँगाने में देर होगी । आप लोगों को रुकना पड़ेगा । लकड़ी भीग भी जायगी । ये सब वस्तुएँ तो फिर बन जायगी ; किन्तु मेरे यहाँ आये अतिथि को निराश होना पड़े या कष्ट हो तो वह दुःख मेरे हृदय से कभी दूर नहीं होगा । ‘ भगवान्ने कर्ण को यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया और वहाँ से अर्जुनके साथ चले आये । लौटकर भगवान्ने अर्जुनसे कहा – ‘ अर्जुन ! देखो , धर्मराज युधिष्ठिर के भवनके द्वार , चौखटें भी चन्दनकी हैं । चन्दन की दूसरी वस्तुएँ भी राजभवन में हैं । लेकिन चन्दन माँगने पर भी उन वस्तुओं को देने की याद धर्मराजको नहीं आयी और सूखी लकड़ी माँगने पर भी कर्ण ने अपने घर की मूल्यवान् वस्तुएँ तोड़कर लकड़ी दे दी । कर्ण स्वभाव से उदार हैं और धर्मराज युधिष्ठिर विचार करके धर्मपर स्थिर रहते हैं । मैं इसी से कर्ण की प्रशंसा करता हूँ । ‘

इस( mythology story in hindi.)कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि परोपकार , उदारता , त्याग तथा अच्छे कर्म करने का स्वभाव बना लेना चाहिये । जो लोग नित्य अच्छे कर्म नहीं करते और सोचते रहते हैं कि कोई बड़ा अवसर आनेपर वे महान् त्याग या उपकार करेंगे , उनको अवसर आने पर यह बात सूझती ही नहीं कि वह महान् त्याग किया कैसे जाय । जो छोटे – छोटे अवसरों पर भी त्याग तथा उपकार करने का स्वभाव बना लेता है , वही महान् कार्य करने में भी सफल होता है ।

4. Hindi kahani : राजा रघु की कथा। mythology story in hindi

राजा रघु की कथा(mythology story in hindi): महाराज रघु अयोध्याके सम्राट् थे । वे भगवान श्रीराम के प्रपितामह थे । उनके नाम से ही उनके वंश के क्षत्रिय रघुवंशी कहे जाते हैं । एक बार महाराज रघु ने एक बड़ा भारी यज्ञ किया । जब यज्ञ पूरा हो गया तब महाराज ने ब्राहाणों तथा दीन – दुःखियों को अपना सब धन दान कर दिया । महाराज इतने बड़े दानी थे कि उन्होंने अपने आभूषण , सुन्दर वस्त्र और सब बर्तनतक दान कर दिये । महाराज के पास साधारण वस्त्र रह गया । वे मिट्टी के बर्तनों से काम चलाने लगे । यज्ञ में जब महाराज रघु सर्वस्व दान कर चुके , तब उनके पास वरतन्तु ऋषि के शिष्य कौत्स नामके एक ब्राह्मणकुमार आये ।

महाराज ने उनको प्रणाम किया , आसन पर बैठाया और मिट्टी के गडुवे से उनके पैर धोये । स्वागत सत्कार हो जानेपर महाराज ने पूछा – ‘ आप मेरे पास कैसे पधारे हैं ? मैं क्या सेवा करूँ ? ‘ कौत्स ने कहा – ‘ महाराज ! मैं आया तो किसी कामसे ही था ; किंतु आपने तो सर्वस्व दान कर दिया है । मैं आप जैसे महादानी उदार पुरुषको संकोच में नहीं डालूंगा । ‘ महाराज रघु ने नम्रता से प्रार्थना की – ‘ आप अपने आने का उद्देश्य तो बता दें । ‘ कौत्स ने बताया कि उनका अध्ययन पूरा हो गया है । अपने गुरुदेव के आश्रम से घर जाने से पहले गुरुदेव से उन्होंने गुरुदक्षिणा माँगने की प्रार्थना की । गुरुदेव ने बड़े स्नेह से कहा – ‘ बेटा ! तूने यहाँ रहकर जो मेरी सेवा की है , उससे समझ मैं बहुत प्रसन्न हूँ । मेरी गुरुदक्षिणा तो हो गयी । तू संकोच मत कर । प्रसन्नता से घर जा । ‘ लेकिन कौत्स ने जब गुरुदक्षिणा देने का हठ कर लिया तब गुरुदेव को कुछ क्रोध आ गया । वे बोले – ‘ तूने मुझसे चौदह विद्याएँ पढ़ी हैं , अत : प्रत्येक विद्या के लिये एक करोड़ सोने की मोहरें लाकर दे । ‘ गुरुदक्षिणा के लिये चौदह करोड़ सोने की मोहरें लेने कौत्स अयोध्या आये थे । महाराज ने कौत्स की बात सुनकर कहा – ‘ जैसे आपने यहाँ तक आने की कृपा की है , वैसे ही मुझपर थोड़ी – सी कृपा और करें । तीन दिनतक आप मेरी अग्निशालामें ठहरें । रघु के यहाँ से एक ब्राह्मणकुमार निराश लौट जाय , यह तो बड़े दुःख एवं कलंक की बात होगी । मैं तीन दिन में आपकी गुरुदक्षिणा का कोई – न – कोई प्रबन्ध अवश्य कर दूंगा । ‘ कौत्स ने अयोध्या में रुकना स्वीकार कर लिया ।

महाराज ने अपने मन्त्री को बुलाकर कहा – ‘ यज्ञ में सभी सामन्त नरेश कर दे चुके हैं । उनसे दुबारा कर लेना न्याय नहीं है । लेकिन कुबेरजी ने मुझे कभी कर नहीं दिया । वे देवता हैं तो क्या हुआ , कैलाश पर रहते हैं । इसलिये पृथ्वी के चक्रवर्ती सम्राट् को उन्हें कर देना चाहिये । मेरे सब अस्त्र – शस्त्र मेरे रथ में रखवा दो । मैं कल सबेरे कुबेर पर चढ़ाई करूँगा । आज रात को मैं उसी रथ में सोऊँगा । जब तक ब्राह्मणकुमार को गुरुदक्षिणा न मिले , मैं राजमहल में पैर नहीं रख सकता । ‘ उस रात महाराज रघु रथ में ही सोये । लेकिन बड़े सबेरे उनका कोषाध्यक्ष उनके पास दौड़ा आया और कहने लगा – ‘ महाराज ! खजाने का घर सोने की मोहरों से ऊपरतक भरा पड़ा है । रातमें उसमें मोहरों की वर्षा हुई है । ‘

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Hindi kahani : राजा रघु की कथा। mythology story in hindi

महाराज समझ गये कि कुबेरजी ने ही यह मोहरों की वर्षा की है । महाराज ने सब मोहरों का ढेर लगवा दिया और कौत्स से बोले – ‘ आप इस धन को ले जाय ! ‘कौत्स ने कहा – ‘ मुझे तो गुरुदक्षिणा के लिये चौदह करोड़ मोहरें चाहिये । उससे अधिक एक मोहर भी मैं नहीं लूंगा । ‘ महाराज ने कहा – ‘ लेकिन यह धन आपके लिये आया है । ब्राह्मण का धन हम अपने यहाँ नहीं रख सकते । आपको ही यह सब लेना पड़ेगा । ‘ कौत्स ने बड़ी दृढ़ता से कहा – ‘ महाराज ! मैं ब्राह्मण हूँ । धनका मुझे करना क्या है । आप इसका चाहे जो करें , मैं तो एक मोहर अधिक नहीं लूँगा । ‘ कौत्स चौदह करोड़ मोहरें लेकर चले गये । शेष मोहरें महाराज रघुने दूसरे ब्राह्मणों को दान कर दी ।

5. Hindi kahani : एक दयालु राजा। mythology story in hindi

एक दयालु राजा(mythology story in hindi): एक राजा बड़े धर्मात्मा और दयालु थे ; किंतु उनसे भूलसे कोई एक पाप हो गया था । जब उनकी मृत्यु हो गयी , तब उन्हें लेने यमराज के दूत आये । यमदूतों ने राजाको कोई कष्ट नहीं दिया । यमराज ने उन्हें इतना ही कहा था कि वे राजा को आदरपूर्वक नरकों के पास से आने वाले रास्ते से ले आवें । राजा की भूलसे जो पाप हुआ था , उसका इतना ही दण्ड था । यमराज के दूत राजा को लेकर जब नरकों के पास पहुँचे तो नरक में पड़े प्राणियों के चीखने , चिल्लाने , रोने का शब्द सुनकर राजा का हृदय घबरा उठा । वे वहाँ से जल्दी – जल्दी जाने लगे । इसी समय नरक में पड़े जीवों ने उनसे पुकार कर प्रार्थना की — ‘ महाराज ! आपका कल्याण हो ! हम लोगों पर दया करके आप एक घड़ी यहाँ खड़े रहिये । आपके शरीर से लगकर जो हवा यहाँ आती है , उसके लगने से हम लोगों की जलन और पीड़ा एकदम दूर हो जाती है । हमें इससे बड़ा सुख मिल रहा है । ‘

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Hindi kahani : एक दयालु राजा। mythology story in hindi

राजाने उन नारकी जीवों की प्रार्थना सुनकर कहा – ‘ मित्रो ! यदि मेरे यहाँ खड़े रहने से आप लोगों को सुख मिलता है तो मैं पत्थर की भाँति अचल होकर यहीं खड़ा रहूँगा । मुझे यहाँ से अब आगे नहीं जाना है । ‘यमदूतों ने राजा से कहा – ‘ आप तो धर्मात्मा हैं । आपके खड़े होने का यह स्थान नहीं है । आपके लिये तो स्वर्ग में बहुत उत्तम स्थान बनाये गये हैं । यह तो पापी जीवों के रहने का स्थान है । आप यहाँ से झटपट चले चलें । ‘ राजा ने कहा – ‘ मुझे स्वर्ग नहीं चाहिये । भूखे – प्यासे रहना और नरक की आग में जलते रहना मुझे बहुत अच्छा लगेगा , यदि अकेले मेरे दुःख उठाने से इन सब लोगों को सुख मिले । प्राणियों की रक्षा करने और उन्हें सुखी करनेमें जो सुख है वैसा सुख तो स्वर्ग या ब्रह्मलोक में भी नहीं है । ‘ उसी समय वहां धर्मराज तथा इंद्र आए धर्मराज ने कहा राजन मैं आपको स्वर्ग ले जाने के लिए आया हूं। अब आप चले राजा ने कहा जब तक यह नर्क में पड़े जीव इस कष्टसे नहीं छूटेंगे , मैं यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगा । ‘ धर्मराज बोले – ‘ ये सब पापी जीव हैं । इन्होंने कोई पुण्य नहीं किया है । ये नरक से कैसे छूट सकते हैं ? ‘ राजाने कहा – ‘ मैं अपना सब पुण्य इन लोगों को दान कर रहा हूँ । आप इन लोगों को स्वर्ग ले जायँ । इनके बदले मैं अकेले नरक में रहूँगा । ‘ राजा की बात सुनकर देवराज इन्द्रने कहा – ‘ आपके पुण्य को पाकर नरक के प्राणी दुःखोंसे छूट गये हैं । देखिये ये लोग अब स्वर्ग जा रहे हैं । अब आप भी स्वर्ग चलिये । ‘ राजाने कहा – ‘ मैंने तो अपना सब पुण्य दान कर दिया । अब आप मुझे स्वर्ग में चलने को क्यों कहते हैं ? ‘ देवराज हँसकर बोले – ‘ दान करने से वस्तु घटती नहीं , बढ़ जाती है । आपने इतने पुण्यों का दान किया , यह दान उन सबसे बड़ा पुण्य हो गया । अब आप हमारे साथ पधारें । दुःखी प्राणियों पर दया करने से ये नरेश अनन्त काल तक स्वर्ग का सुख भोगते रहे ।

6. Hindi kahani : महर्षि दधीचि की पौराणिक कहानी। mythology story in hindi

महर्षि दधीचि की पौराणिक कहानी (mythology story in hindi) : महर्षि अथर्वा की पत्नी शान्ति से दधीचि जी का जन्म हुआ था । छोटेपन से ही दधीचि बड़े शान्त , परोपकारी और भगवान्के भक्त थे । उन्हें भगवान् शंकरका भजन करना और तपस्या में लगे रहना , यही अच्छा लगता था । कुछ बड़े होते ही पिता से आज्ञा लेकर वे तपस्या करने चले गये और हिमालय पर्वत के एक पवित्र शिखर पर सैकड़ों वर्षों तक तप करते रहे । त्वष्टाके पुत्र वृत्रासुर ने जब देवताओं को हराकर स्वर्गपर अधिकार कर लिया और देवताओं को उस असुर को जीतने का कोई उपाय नहीं सूझ पड़ा तो वे भगवान् नारायण की शरण में गये । भगवान् नारायण ने देवताओं से कहा – ‘ वृत्रासुर को कोई भी किसी साधारण हथियार से नहीं मार सकता । वह पहले जन्म में शेषजी का भक्त था । उसे तो महर्षि दधीचि की हड्डियों से बने वज्र के द्वारा इन्द्र ही मार सकते हैं । महर्षि धर्म दधीचि ने इतनी बड़ी तपस्या की है कि उनकी हड्डियों में अपार शक्ति आ गयी है । वे इतने परोपकारी हैं कि माँगने पर अपनी हड्डियाँ अवश्य दे देंगे । ‘ महर्षि दधीचि – जैसे तपस्वी को कोई मार तो सकता नहीं था । देवता जानते थे कि वे क्रोध करें तो किसी को भी भस्म कर सकते हैं । इसलिये सब देवता उनके आश्रम में गये ऋषिने देवताओं का आदर किया , उनकी पूजा की पूछा – ‘ आपलोग किसलिये आये हैं ? ‘

पौराणिक कहानियां । mythology story in hindi
Hindi kahani : महर्षि दधीचि की पौराणिक कहानी। mythology story in hindi

देवताओं के राजा इंद्र ने कहा वृत्रासुर ने हमारे घर द्वार छीन लिए है हम लोग बहुत दुखी होकर आपकी शरण में आए हैं। साधु पुरुष अपने पास आए दुखी लोगों का दुख कष्ट उठाकर भी दूर करते हैं।महर्षि दधीचि बोले – ‘ मैं ब्राह्मण हूँ । युद्ध करना मेरा धर्म नहीं है । असुर ने मेरा कोई अपराध किया नहीं , इसलिये उसे शाप देने से मुझे पाप लगेगा । ‘ इन्द्रने कहा – ‘ हम सब तो आपसे यह प्रार्थना करने आये हैं कि आप अपनी हड्डियाँ दे दें तो उससे वज्र बनाकर हम वृत्रासुर को जीत लेंगे । ‘ प्रार्थना करके इन्द्र चुप हो गये । लेकिन महर्षि दधीचि को बड़ी प्रसन्नता हुई । वे बोले – ‘ यह तो बहुत उत्तम बात है । मृत्यु तो एक दिन होनी ही है । किसी का उपकार करने में मृत्यु हो जाय , इससे उत्तम बात और क्या होगी। मैं अभी शरीर छोड़ रहा हूं आप लोग मेरी सब हड्डियां ले ले। महर्षि ने आसन लगाया नेत्र बंद किए और योग के द्वारा शरीर छोड़ दिया जंगल की गाये वहां आ गई और उन्होंने दधीचि के देह का सब चमड़ा मांस आदि चाट लिया। उनकी हड्डियों से विश्वकर्मा ने वज्र बनाया उसी वजह से इंद्र ने वत्रासुर को मारा । दूसरों का उपकार करने के लिए अपने शरीर की हड्डियां तक देने वाले महर्षि दधीचि मरकर भी अमर हो गए जब तक पृथ्वी रहेगी लोग उनका स्मरण करेंगे और आदर भाव से उनके लिए सिर झुकायेंगे।

7. Hindi kahani : महाराज दिलीप की कहानी। mythology story in hindi

महाराज दिलीप की गो – भक्ति और गुरु – भक्ति(mythology story in hindi): अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट् महाराज दिलीप के कोई संतान नहीं थी । एक बार वे अपनी पत्नी के साथ गुरु वसिष्ठजी के आश्रम में गये और पुत्र पाने के लिये महर्षि से प्रार्थना की । महर्षि वसिष्ठ ने ध्यान करके राजा के पुत्र न होने का कारण जान लिया और बोले – ‘ महाराज ! आप देवराज इन्द्र से मिलकर जब स्वर्ग से पृथ्वी पर आ रहे थे तो आपने रास्ते में खड़ी कामधेनु को प्रणाम नहीं किया । शीघ्रता में होने के कारण आपने कामधेनु को देखा ही नहीं । कामधेनु ने आपको शाप दे दिया है कि उनकी संतान की सेवा किये बिना आपको पुत्र नहीं होगा । ‘ महाराज दिलीप बोले- ‘ गुरुदेव ! सभी गायें कामधेनु की संतान हैं , गो – सेवा तो बड़े पुण्य का काम है । मैं गायों की सेवा करूँगा । ‘ वसिष्ठजी ने बताया- -‘मेरे आश्रम में जो नन्दिनी नाम की गाय है , वह कामधेनु की पुत्री है । आप उसी की सेवा करें । ‘ महाराज दिलीप सबेरे ही नन्दिनी के पीछे – पीछे वन में गये ।

नन्दिनी जब खड़ी होती तो वे खड़े रहते , वह चलती तो उसके पीछे चलते , उसके बैठनेपर ही बैठते और उसके जल पी लेने पर ही जल पीते । वे उसके शरीर पर एक मक्खी तक बैठने नहीं देते थे । संध्या के समय जब नन्दिनी आश्रम को लौटती तो उसके पीछे – पीछे महाराज लौट आते । महारानी सुदक्षिणा उस गौ की सायंकाल और प्रात : काल पूजा करती थीं । रात को उसके पास दीपक जलाती थीं और महाराज गोशाला में गाय के पास भूमि पर ही सोते थे । इस प्रकार एक महीने तक महाराज दिलीप ने बड़े परिश्रम और सावधानी से नन्दिनी की सेवा की । जिस दिन महाराज को गो सेवा करते एक महीना पूरा हो रहा था , उस दिन वन में महाराज कुछ सुन्दर पुष्पों को देखने लगे और इतने में नन्दिनी आगे चली गयी । दो – चार क्षण में ही उस गाय के डकराने की बड़ी करुण ध्वनि सुनायी पड़ी ।

महाराज जब दौड़कर वहाँ पहुँचे तो देखते हैं कि एक झरने के पास एक बड़ा भारी सिंह उस सुन्दर गायको दबाये बैठा है । सिंह को मारकर गाय को छुड़ाने के लिये महाराजने धनुष चढ़ाया , किंतु जब तरकस से बाण निकालने चले तो दाहिना हाथ तरकसमें ही चिपक गया ।आश्चर्यमें पड़े महाराज दिलीप से सिंह ने मनुष्य की भाषा में कहा – ‘ राजन् ! मैं कोई साधारण सिंह नहीं हूँ । मैं भगवान् शंकरका सेवक हूँ । अब आप लौट जाइये । जिस काम के करने में अपना बस न चले , उसे छोड़ देने में कोई दोष नहीं होता । मैं भूखा हूँ । यह गाय मेरे भाग्य से ही यहाँ आ गयी है । इससे मैं अपनी भूख मिटाऊँगा । ‘ महाराज दिलीप बड़ी नम्रता से बोले – ‘ आप भगवान् शंकरके सेवक हैं , इसलिये मैं आपको प्रणाम करता हूँ । सत्पुरुषों के साथ बात करने तथा थोड़े क्षण भी साथ रहने से मित्रता हो जाती है । आपने जब कृपा करके मुझे अपना परिचय दिया है तो मेरे ऊपर इतनी कृपा और कीजिये कि इस गौ को छोड़ दीजिये और इसके बदले में मुझे खाकर अपनी भूख मिटा लीजिये । ‘

पौराणिक कहानियां । mythology story in hindi
Hindi kahani  : महाराज दिलीप की कहानी। mythology story in hindi

सिंहने राजा को बहुत समझाया कि एक गाय के लिये चक्रवर्ती सम्राट् को प्राण नहीं देना चाहिये । वे अपने गुरु को हजारों गायें दान कर सकते हैं और जीवन में हजारों गायों का पालन तथा रक्षा भी कर सकते हैं ; किन्तु महाराज दिलीप अपनी बात पर दृढ़ बने रहे । एक शरणागत गौ महाराज के देखते – देखते मारी जाय , इससे उसे बचाने में प्राण दे देना उन्हें स्वीकार था । अन्त में सिंह ने उनके बदले गाय को छोड़ना स्वीकार कर लिया । महाराज का चिपका हाथ तरकस से छूट गया । उन्होंने धनुष और तरकस अलग रख दिया और सिर झुकाकर वे सिंह के आगे बैठ गये । महाराज दिलीप समझते थे कि अब सिंह उनके ऊपर कूदेगा और उन्हें फाड़कर खा जायगा ; परन्तु उनके ऊपर आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी । नन्दिनी ने उन्हें मनुष्य की भाषा में पुकारकर कहा – ‘ महाराज ! आप उठिये । यहाँ कोई सिंह नहीं है , यह तो मैंने आपकी परीक्षा लेने के लिये माया दिखायी है । अब आप पत्ते के दोने में दुहकर मेरा दूध पी लीजिये । आपके गुणवान् तथा प्रतापी पुत्र होगा । ‘

महाराज उठे । उन्होंने उस कामधेनु गौको प्रणाम किया और हाथ जोड़कर बोले – ‘ माता ! आपके दूधपर पहले आपके बछड़े का अधिकार है । उसके बाद बचा दूध गुरुदेव का है । आश्रम लौटने पर गुरुदेव की आज्ञा से ही मैं थोड़ा – सा दूध ले सकता हूँ । ‘ महाराज की गुरुभक्ति तथा धर्म – प्रेम से नन्दिनी और भी प्रसन्न हुई । शाम को आश्रम लौटने पर महर्षि वसिष्ठ की आज्ञा से महाराज ने नन्दिनी का थोड़ा – सा दूध पिया । समय आने पर महाराज दिलीप के परम प्रतापी पुत्र हुआ ।

पौराणिक कहानियां । mythology story in hindi

तो दोस्तों मैं आशा करता हूं कि आपको पौराणिक कहानियां । (mythology story in hindi) पसंद आई होगी। धन्यवाद।

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